छोड़ो जी ( गीतिका )
अपनों से मुख मत मोड़ो ,
जीवन का हर दुख छोड़ो।
पेड़ जो दे शीतल छांह ,
मत काटो उसे निगोड़ों।
गरमी में दे शीतल जल ,
उस मटके को मत फोड़ो।
नाटक करता सोने का ,
उसको थोड़ा झिंझोड़ो।
जो है भला पड़ोसी जी ,
उससे इक नाता जोड़ो।
प्यास लगे तो कुआँ खोद ,
ऐसी बातें अब छोडो।
— महेंद्र कुमार वर्मा