मन्नत
आफिस से घर आने की जल्दी में मन्नत ने शोर मचा रखा था…प्रियंका जल्दी चल, आज मुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं। प्रियंका ने भी शरारती भरे अंदाज़ में कहा… अच्छा बड़ी जल्दी है बेशर्म , थोड़ा सब्र है कि नहीं??
नहीं है , बस! सुना है अरविंद बहुत हैंडसम हैं, तू तो दूर ही रहना उससे। तेरा कोई पता नहीं कब रिझा ले उसे।
प्रियंका मुंह लटकाकर, चलो जो आया भी नहीं ज़िन्दगी में… उसके लिए हम लोगों की तो पहले ही छुट्टी हो गई मन्नत।
घर आ गया मन्नत, जा अब सज संवर ले! अरविंद को बोल… कर ले शादी तुझसे, देखने से पहले ही पसंद है जीजू। अच्छा बाबा कल बात करते हैं, जा अब…बाए। मन्नत जल्दी अंदर आती है , मम्मी किचन से आवाज़ लगाती है बेटा वो लोग निकल गए हैं कभी भी पहुंच जाएंगे। जल्दी से तैयार हो जा किचन का काम हो गया है…”ओके बाॅस ” मन्नत खुशी से कहती है। अच्छा अब यहां तेरा बाॅस नहीं पति आने वाला है, जल्दी तैयार होकर आ जा बेटा। मन्नत आईने में खुद को निहारती है, मैं अरविंद को पसंद आ जाऊंगी न। क्या पता अकड़ु न हो, बोले बड़ी सीधी सादी सी बनी है… बिलकुल मार्डन नहीं आजकल की लड़कियों की तरह। इसी उधेड़बुन में तैयार होकर बाहर आती है, मम्मी मैं तैयार हूं। मनु भैया कहां है?? बाज़ार गया होगा कुछ लेने , मम्मी किचन से बाहर आकर राहत की सांस लेती है और मन्नत को निहारती है । बस तेरी शादी हो जाए तो बहु भी ले आऊंगी, तेरे पापा होते तो मुझे और मनु को इतनी फिक्र न होती। मनु घर आकर कहता है , मम्मी लड़के वाले आ गए हैं। मम्मी और मनु सभी का आदर सत्कार करते हैं… मन्नत सबसे निगाहें छुपाकर अरविंद को देख रही थी, अरविंद का भी यही हाल था। नज़रें मिलने पर दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं।
अरविंद के भी पापा नहीं थे , बहनों की शादी हो चुकी थी। मन्नत की तरफ देखकर अरविंद की मम्मी कहती है… अरविंद के लिए बस सुंदर सी बहु मिल जाए तो हम भी खुश हो जाएं।
मन्नत नाम तो बहुत अच्छा है, अरविंद की मम्मी हंसकर कहती है बेटा…तुम शादी के बाद भी नौकरी कर सकती हो। हमें अरविंद के लिए ऐसी ही सुशील, सीधी सादी सी लड़की चाहिए थी। मुझे तो मन्नत पसंद है, ऐसा लगता है मानो मेरी बरसों की मन्नत पूरी हो गई।
अरविंद की मम्मी मन्नत की मम्मी से कहती हैं …बहन जी, ज़माने के अनुसार अब मन्नत और अरविंद भी अकेले में एक दूसरे से पसंद ना पसंद पूछ लेते हैं। हमारे कहने से क्या होगा?? हां-हां …क्यों नहीं, जाओ मन्नत तुम अरविंद को अपने कमरे में ले जाओ। दोनों कमरे में जाते हैं अब अरविंद और मन्नत एक दूसरे की पसंद पूछते हैं।
अरविंद कहता है मन्नत मुझे तुम बहुत पसंद हो…और क्या कहूं, तुम्हें कोई दबाव तो नहीं है न। क्या तुम्हें ये रिश्ता पसंद है?? मन्नत ने झटसे सिर हिलाकर हां कर दी। उसने तो जो चाची रिश्ता करा रहे थे…उनसे बहुत तारीफ सुनी थी, उसे तो अरविंद तब के पसंद आ गए थे।
अगर तुम्हें कुछ पूछना है मन्नत , तो पूछ सकती हो। मन्नत को तो समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं?? अरविंद तो उसे बहुत पसंद है, अब तो वो शादी करेगी तो अरविंद से ही…ऐसा लगता है मानो मेरे सपनों का राजकुमार सामने आ गया हो। अरविंद कुछ देर बैठता है फिर मन्नत की खामोशी उसे बता देती है कि उसे कोई ऐतराज़ नहीं है।
चलें… अरविंद कहता है और मन्नत को सबके पास ले जाता है। दोनों शादी के लिए अपनी रजामंदी दे देते हैं। अरविंद की मम्मी कहती हैं ….बहन जी मन्नत अब से हमारी अमानत है आपके पास।
हमारी तरफ से हां है!
आप सोच कर जवाब दे दिजिए फिर आगे की बात करते हैं, अरविंद और उसकी मम्मी फिर उठकर चले जाते हैं। उनको विदा कर सब अंदर आते हैं। जब मन्नत अंदर आती है तो भैया मन्नत को फिर से पूछते हैं, सोच ले जो तुझे अच्छा लगे वही होगा। मन्नत शरमा कर हां कर देती है ,भैया मेरी तरफ से हां है। आप और मम्मी आपस में सलाह कर लो, मुझे कोई दिक्कत नहीं… मैं खुश हूं।
मन्नत अपने कमरे चली जाती है और आइने को निहारती हुए कहती है ….मैंने कभी सोचा भी नहीं था मुझ जैसी झल्ली को इतना हैंडसम लड़का मिलेगा। भगवान आज मुझे कुछ नहीं चाहिए, मनपसंद नौकरी इतना अच्छा पति …बस ये शादी अच्छे से हो जाए यही दुआ है। नींद कब मन्नत को अपने आगोश में लेती है उसे पता नहीं चलता और सुबह के अलार्म के साथ नींद खुलती है। अरे…मैं तो इन्हीं कपड़ों के साथ सो गई थी, मन्नत बेटा तू तो गई काम से अभी बात चल रही है तो ये हाल है…आगे क्या होगा बाबू।
मन्नत जल्दी से बाथरूम जाती है और तैयार होकर बाहर आती है, मां प्यार से आवाज़ लगाती है मन्नत आ देख नाश्ता तैयार है… खा लेना, मैं मंदिर जा रही हूं। जाओ मम्मी लगता है आपने मेरी शादी की मन्नत मांगी होगी पक्का…है न ! बस कर खाना खा और आफिस जा, बाकी बातें आकर करेंगे।
मन्नत जल्दी खाना खाती है इतनी देर में प्रियंका भी आ जाती है, मन्नत क्या हुआ तेरा ….तुझे लेकर नहीं गया अरविंद यहीं छोड़ गया।
मन्नत भी कहती है ठहर तू… मनु भैया उठने वाले हैं नहीं तो आज तुम दोनों की भी बात पक्की करा देती।
चुपकर …पागल है, तेरे भैया हैं वो,
मन्नत कहती है- तो क्या?? …मैने देखा है तुम दोनों चोरी – चोरी एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हो।
प्रियंका उसके मुंह पर हाथ रखकर उसे बाहर खींचकर ले जाती है…मरवाना है, आंटी सुनेगी क्या सोचेंगी अच्छा खासा इंम्प्रेशन खराब करेगी मोटी…चल अब पहले तू जा फिर मैं आ जाऊंगी तेरे घर खुद ही।
मन्नत जानती थी भैया को प्रियंका पसंद है, इतनी अच्छी फैमिली से है…पर उसके घरवाले भी मानने चाहिए, एक दिन तो मैं बात करके रहूंगी तुम्हारी।
प्रियंका कहती हैं अच्छा छोड़ हमारी अधूरी कहानी तू अपनी सुना…क्या कहा अरविंद ने, कब लेकर जाएगा तुझे अपने घर।
बड़ी जल्दी है प्रियंका तुम्हें मेरी शादी की…प्रियंका कहती हैं अपना सोच रही हूं मुन्नी।
दोनों हसंते हंसते कब आफिस पहुंच जाते हैं पता नहीं चलता, मन्नत को अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी किस्मत इतनी अच्छी है कि सब मनोकामनाएं पूरी होती दिख रही हैं। आफिस में भी दिनभर यही बात चलती है ,घर आकर मन्नत को पता चलता है कि उसके घरवालों और अरविंद के घरवालों ने शादी पक्की कर दी है और सगाई की तारीख भी तय हो गई थी। सब सपने की तरह लग रहा था , सगाई कुछ दिन बाद ही थी इसलिए शापिंग शुरू हो जाती है। मां मन्नत से कहती हैं ….मन्नत दो दिन आफिस से छुट्टी मिलती है तो लेकर आराम से अपनी पसंद के कपड़े और जरूरी सामान ले लो तुम और प्रियंका। ठीक है मम्मी , मैं देख लूंगी आप और मनु भैया भी अपने लिए कर लो खरीदारी। अच्छा बेटा हमारा क्या है तेरा जरूरी है जो जी आए ले लेना शरमाना मत। ये दिन रोज़ थोड़ा आता है, सिर पर हाथ फेरकर मां भावुक होती है… मन्नत हंसकर, मम्मी रोने का नहीं! जब जाऊंगी तो अपनी जगह दूसरी बेटी… जानी आपकी बहु फिक्स करके जाऊंगी जिससे आपको अकेलापन नहीं लगे। कौन सी बहु फिक्स की है तूने… मम्मी आप भी न! सबको समझ आ गया है आप को देखकर भी समझ नहीं आता, प्रियंका और कौन?? दोनों चोरी-चोरी देखते हैं एक दूसरे को और मुस्कुराते हैं। अरे प्रियंका.. बेटा है तो भली लड़की पर बहुत अमीर है मानेंगे हमारे मनु के लिए …न मुझे नहीं लगता।
नौकरी भी करती है किसी बात की कमी नहीं फिर क्यों हमारे मनु से करेंगे शादी। मम्मी हो जाएगी मैं हूं न …
अच्छा जब टाईम आएगा देखेंगे… मम्मी भी हंस देती है मन्नत को देखकर। घर में चहल-पहल शुरू हो जाती है , शापिंग के बहाने प्रियंका का भी घर में आना जाना बड़ जाता है। मनु और प्रियंका भी एक दूसरे के और करीब आ जाते हैं, अब तो बातचीत भी शुरू हो जाती है। मन्नत खूब चिढ़ाती है दोनों को। सगाई का दिन भी आ जाता है और दोनों की धूमधाम से सगाई हो जाती है। फिर शादी की तारीख भी जल्दी की निकल आती है, दोनों के मिलने और फोन पर बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है। सब कुछ ठीक चलता रहता है। प्रियंका और मन्नत धीरे – धीरे अपनी शापिंग करते हैं, बाकी मनु और मम्मी दूसरी तैयारियों में जुट जाते हैं।
मन्नत अपने ख्वाबों को संजो रही थी, प्रियंका अपने प्रेम को पाने के लिए आगे कदम बढ़ा रही थी। मन्नत एक सम्पन्न परिवार में जा रही थी यहां सब कुछ था जो उसने सोचा था, प्रियंका को अभी ख्वाबों को पूरा करने के लिए बहुत प्रयास करना था। अभी तो शुरुआत थी जिसकी राहें भी खोजनी थी और मंज़िल तो अभी बहुत दूर थी। एक- एक कर दिन बीतते जाते हैं, अरविंद और मन्नत एक दूसरे के करीब आते हैं, दोनों को लगता है सब कुछ मिल गया है।
दोनों इस रिश्ते से बहुत खुश थे, अरविंद को सादी सी लड़की चाहिए थी और मन्नत को अच्छा परिवार और हैंडसम पति।अरविंद एक सफल बिजनेस मैन थे, फिर भी मैं झल्ली उनको पसंद आ गई। वो चाहते तो कोई भी खुशी खुशी उनकी तरफ खिंची चली जाती। मन्नत और अरविंद एक दूसरे से मिलते रहते हैं , अरविंद बहुत खुश होता है और मन्नत भी,दोनों को कोई शिकायत नहीं होती एक दूसरे से। मन्नत सबसे प्यार करने वाली और आदर करने वाली हैती है। अरविंद सहज ही उसको अपनाते हैं, मन्नत तुम खुश हो न ! एक दिन अचानक ही अरविंद मन्नत का हाथ पकड़कर पूछ लेते हैं, मन्नत शरमा जाती है और कहती है हां!
अरविंद मैं तो बहुत खुश हूं अपनी किस्मत पर इतरा रही हूं कि मैं इतनी खुशनसीब हूं आप जैसा अच्छा पति और मम्मी जैसी सासु मां मिली है। मेरे जैसा खुशनसीब कौन होगा, मैं बहुत खुश हूं। पता नहीं मैं आपके काबिल भी हूं कि नहीं, अरविंद उसके मुंह पर हाथ रखकर कहता ऐसा फिर मत कहना। तुम तो मेरी ज़िन्दगी में बहार के जैसे आई हो, मैं भी बहुत खुश हूं। बस शादी करा के जल्दी से तुम्हें घर लाने को जी करता है। पता नहीं कब बीतेंगे ये दिन ,कहकर दोनों चल पड़ते हैं। आओ मन्नत अब तुम्हें घर छोड़ देता हूं कहीं तुम्हारी मम्मी को और भैया कै फिक्र न हो जाए।
मन्नत प्रियंका को भी अरविंद से मिलाती है और बता देती है कि ये और उसके भैया एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं। मन्नत कहती है ये मेरी सबसे प्यारी दोस्त है, बस हमारी शादी के बाद भैया को कहकर इसे हम बैंड बाजे के साथ अपने घर ले आएंगे। सभी हंसते हैं, अरविंद दोनों को बाए कहकर जाने लगता है। प्रियंका भी मन्नत से अरविंद की बहुत तारीफ करती है,कहती है जीजू तो बहुत अच्छे हैं कितने प्यारे हैं। अच्छा मोटी दूर ही रहना तू…मन्नत हंसकर कहती है। प्रियंका कहती है हम तो दिल दे चुके सनम ,पर नज़र ही रखना जीजू पर इतने हैंडसम हैं कोई चुरा न ले तुझसे। मज़ाक कर रही हूं मन्नत …प्रियंका हंसकर चिढ़ाती है और चली जाती है। प्रियंका किसी को पसंद करती है ये बात किसी तरह से उसके घर तक भी पहुंच जाती है। बहुत पूछने पर वो सब बता देती है कि वो मन्नत के भाई को पसंद करती है. …..मां कहती है बेटा, मन्नत का परिवार अच्छा है मन्नत भी बहुत अच्छी है पर क्या तुझे नहीं लगता कि तू सुंदर है पढ़ी- लिखी है, नौकरी भी करती है। सब कुछ है किसी बात की कोई कमी नहीं है, मनु क्या तुझे अच्छे से रख पाएगा?? वो एक साधारण सी कंपनी में जाॅब करता है। कोई बात नहीं मम्मी मैं भी तो कमाती हूं न, सब ठीक हो जाएगा। आप अपने पतिदेव को मना लेना। अच्छा मम्मी कहती हैं …तेरे पापा तेरी कम और मेरी बात ज्यादा सुनते हैं क्या??
अच्छा अब मैं कमरे में जा रही हूं, कहकर प्रियंका अपने कमरे में चली जाती है। उसे नींद महसूस होती है तो सोने ही लगती है कि मन्नत का फोन आता है…प्रियंका ,सो रही है क्या?? जब देखो मोटी सोती रहती है जल्दी घर आ जा तेरे से कोई सलाह करनी है। मनु भैया बुला रहे हैं।
प्रियंका कहती है , सच बोल मरवाना है कया?? मन्नत फिर सिरीयस होकर कहती है नहीं तुझे कुछ दिखाना था और पूछना भी था। प्रियंका कहती है नहीं अभी मुझे नींद आ रही है कल आफिस जाने से कुछ देर पहले आ जाऊंगी।
सुबह का अलार्म बजता है मन्नत जल्दी तैयार होकर बाहर आती है ….किचन से ममी की लाडली आवाज़ आती है,उठ गया मेरा बच्चा। आ जल्दी खाना खा ले, कल को जब ससुराल चली जाएगी फिर जल्दी उठकर सबको खिलाकर आफिस जाना होगा। पता नहीं कैसे संभालेगी घर और आफिस। मां तुम फिक्र मत करो….मैं सब कर लूंगी। याद आया आज प्रियंका ने भी जल्दी आना है। तभी प्रियंका की आवाज़ आती है मन्नत आफिस जाना है न। । नमस्ते आंटी , खुश रहो बेटा मन्नत की ममी प्यार से प्रियंका के सिर पर हाथ फेरकर उसे गले लगाती है। मन्नत उसे खींचकर अपने कमरे में ले जाती है। ममी मेरे हिस्से का प्यार इस मोटी को नहीं दे देना कहीं।
हंसते हुए दोनों कमरे में आती हैं और मन्नत उसे ड्रेस दिखाती है जो वो खासतौर पर अपनी भाभी यानी प्रियंका के लिए लाती है …देख पसंद है तुझे?? वाह! बहुत ही सुन्दर ड्रेस है …चल अच्छा हुआ मुझे पैसे नहीं खर्च करने पड़ेंगे घर बैठे ही इतनी प्यारी ड्रैस मिल गई। मन्नत हंसते हुए कहती हैं थोड़ा भावुक हो जा, मैं चाहती थी कि मेरी शादी में मेरी भाभी ये ड्रेस पहने। दोनों सच में भावुक होकर एक दूसरे के गले मिलती है, प्रियंका तुम सच में मनु भैया से शादी करोगी ना। तुम्हें कोई ऐतराज़ तो नहीं है, आंटी और अंकल जी से मैं बात कर लूंगी तुम फिकर मत करो। नहीं मन्नत ऐसी बात नहीं है मां को पता नहीं कहां से पता चल गया उनसे मेरी बात हो चुकी है मैं जानती हूं वो मेरी पसंद से सहमत हो जाएंगे और पापा को भी वो मना लेंगे।
तेरी ही भाभी बनूंगी मन्नत दीदी।
चल अब आफिस के लिए देर हो रही है। दोनों जल्दी आफिस के लिए निकल पड़ती हैंयूंही हंसते मुस्कुराते कब शादी का टाईम आ जाता है पता नहीं चलता। आखिर मन्नत की शादी बड़ी धूमधाम से हो जाती है। प्रियंका मन्नत के गले लगकर रोती है और कहती है अब आफिस मैं अकेली जाऊंगी, मन्नत धीरे से कहती है मनु भैया के साथ चले जाना। दोनों की हंसी निकल जाती है और मन्नत खुशी -खुशी अपने ससुराल चली जाती है। मन्नत जब भी मायके आती तो प्रियंका से जरूर मिलने जाती, एक दिन मन्नत ने प्रियंका को साफ कह दिया अब घरवालों की मर्जी पूछ ले वरना हम आ जाएं खुद ही बारात लेकर। प्रियंका कहती हैं कर दी है बात हो जाएगी हमारी भी शादी । फिर प्रियंका के मम्मी और पापा मन्नत की मम्मी और मनु से मिलकर सब बात पक्की कर लेते हैं और उन दोनों की शादी भी हो जाती है। मन्नत और प्रियंका ऐसे खुश होते हैं मानो मन मांगी मुराद झट से पूरी हो गई हो। मन्नत जब भी मायके आती वो मम्मी और मनु भैया से कम पर प्रियंका से ज्यादा बातें करती। अरविंद मन्नत को आफिस छोड़ने जाते तो मनु भी प्रियंका कै आफिस छोड़ने जाता। मन्नत और प्रियंका आफिस के फ्री टाईम में भी दिल की बात कर लेते कभी हंसते तो कभी चुप रहकर हल ढूंढने में लग जाते। फिर एक दिन प्रियंका मां के बीमार होने बीमार होने की खबर मन्नत को सुनाती है तो अरविंदऔर मन्नत मां का पता लेने आते हैं, मां बहुत खुश होती है और कहती है अरविंद जी आप आज आपको देखकर ही तबीयत ठीक हो गई। अरविंद हंसते हुए कहता है मां मैं रोज़ आ जाया करूंगा। मां कहती हैं सदा खुश रहो और यूं ही साथ- साथ रहो किसी की नज़र न लगे। अरविंद और मन्नत अब उठकर चले जाते हैं…अच्छा मां फिर आएंगे। प्रियंका और मनु उनको गेट तक छोड़ने जाते हैं।
फिर धीरे -धीरे मां ठीक हो जाती है। शादी के दो साल बाद मन्नत और अरविंद के घर बेटी होती है, मन्नत की सास भी बेटी को गले लगाकर कहती है हमारे घर तो लक्षमी आई है। सब बहुत खुश होते हैं, प्रियंका और मनु भी मन्नत से और अपनी भांजी से मिलने ढेर सारे तोहफे लेकर आते है। मन्नत की ननद उसका नाम सिया रखती है। मन्नत की मैटरनिटी लीव तक वो सिया की देखभाल करती है उसके बाद सासु मां एक लड़की रख लेते हैं जिससे सिया की देखभाल अच्छे तरीके से हो। सिया और दादी की आपस में बहुत बनती है, दादी भी सिया से बहुत प्यार करती है। ऐसे ही वक्त गुज़रता जाता है, वहीं प्रियंका के घर एक बेटे का जन्म होता है, मनन्त और अरविंद अपने भांजे से मिलने जाते हैं और मन्नत अपने भांजे का नाम माही रखती है। सिया जब स्कूल जाने लगती है तो मन्नत की सास अरविंद और मन्नत को दूसरे बेबी एक लड़के के लिए चांस लेने को कहती है। मन्नत और अरविंद पहले तो नहीं मानते वो मां को समझाते हैं कि आजकल लड़की लड़के में कोई फरृक नहीं मां, वैसे भी एक बेबी ठीक है। पर मां जिद्द पर अड़ जाती है रोज़ इसी बात पर चर्चा होती है। आखिर मन्नत और अरविंद चांस लेते हैं पर दूसरी भी बेटी होती है, अरविंद तो ठीक रहता है पर सासु मां का अचानक रवैया बदल जाता है । मन्नत सब समझती तो है पर चुप रहती है,वैसे भी उसे पता होता है कि जब वो आफिस चली जाएगी तो फर्क पड़ जाएगा। दूसरी बेटी का नाम रिया रखा जाता है, दादी शुरू में तो रिया के साथ रूखा व्यवहार करती है पर धीरे धीरे वो रिया के साथ ठीक हो जाते हैं पर मन्नत के साथ वो इतना अच्छा बर्ताव नहीं करते। रिया के बाद सासु मां के बदले रुख से मन्नत बहुत दुखी होती है,वो बहुत कोशिश करती है कि वो पहले जैसे उसके साथ हो जाएं। चाहकर भी ऐसा हो नहीं पाता, सासु मां को प्यार से बुलाती है पर वो रूखे से रहते हैं। एक बार तो हिम्मत करके पूछ भी लिया कि क्या बात है मम्मी जी आप मुझसे पहले की तरह प्यार नहीं करते , मुझसे कोई गल्ती हो गई है तो माफ़ कर दिजिए।
पर सासु मां ने तो जैसे हमेशा उसके साथ ऐस ही रहने की फैसला कर लिया था। उसके बार -बार पूछने पर भी वो यही कहते पता नहीं तुम्हें ऐसा क्यों लगता है मुझे कोई प्राब्लम नही है तुम से। जब कुछ नहीं बदलता तो मन्नत भी ऐसे ही जीने लगती है। अरविंद से भी कहती है,पर वो भी खास ध्यान नहीं देते। अरविंद तो कहता है, सब ठीक है मन्नत तुम्हारी गलतफहमी होगी। वो भी फिर कोशिश नहीं करती,उसे लगता है इससे ज्यादा मैं क्या कर सकती हूं। अरविंद का साथ होता है तो मन्नत इतना नहीं सोचती। अब तो आफिस भी जाने लगती है मन्नत। रिया और सिया दोनों दादी केसाथ खुश रहती हैं। रिया भी स्कूल जाने लगती है पर सासु मां का व्यवहार रूखा ही रहता है, वो कहती कुछ नहीं हैं पर उन्हें मन्नत से चिड़ सी रहती थी। अब वो पहले जैसे प्यार नहीं करते मन्नत से। मन्नत आफिस में प्रियंका से दिल की बात कर लेती थी तो मन हल्का हो जाताथा। ममी को बताकर परेशान नहीं करना चाहती थी। टाईम ऐसे ही निकलता जाता है पर प्रियंका और मन्नत की दोस्ती में कोई फरृ्क नहीं आता वो दोनों हंस भी लेती थी और एक दूसरे का दुख भी बांट लेती थी। एक दिन प्रियंका मन्नत को सुनाती है कि ममी आजकल ठीक नहीं रहते तुम कुछ दिन रह जाना वो तुम्हें याद करते हैं पर कहते नहीं। मन्नत के मन में एक डर सा बैठ जाता है पापा को तो पहले ही खो चुकी थीअब….ममी को कुछ नहीं होना चाहिए। वो अरविंद से और सासु मां से जाने की बात करती है, दोनों मान जाते हैं और कहते हैं चले जाओ कोई बात नहीं, अरविंद कहता है…. मैं तुम्हें छोड़ आऊंगा तुम और रिया चले जाना। सिया की पढ़ाई बड़ी क्लास की है उसे रहने दो , वो दादी के साथ खुश रहती है। हां ,मन्नत मैं सैक्रेटरी रख रहा हूं…हैं कोई तलाकशुदा महिला। मन्नत भी कहती हैं रख लो , उसकी भी कमाई का जरिया हो जाएगा। अरविंद को काम का हिसाब रखने में काफी देर से दिक्कत आ रही थी, एक दो लड़के पहले रख चुका था पर कोई टिकता नहीं था। अब अचानक एक महिला काम पूछने आई थी कह रही थी मायके रहती हूं, काम की सख्त जरूरत है। मैंने हां कर दी… अच्छा किया अरविंद, मन्नत कहती है। अरविंद मन्नत और रिया को छोड़ आता है, जब मन होगा बता देना मैं तुम्हें ले जाऊंगा। अरविंद जल्दी ही घर चला जाता है।
अगले दिन सुबह जब काम पर जाता है तो सैक्रेटरी रीना पहले से ही उसका इंतज़ार कर रही होती है। अरविंद कहता है ज्यादा देर तो नहीं इंतज़ार करना पड़ा, मेरी बेटी सिया के साथ बातें कर रहा था तो टाईम का पता नहीं चला। मेरी पत्नी मायके गई है वो घर पर थी इसलिए। कोई बात नहीं सर…रीना मुस्कुराते हुए जवाब देती है। जल्दी ही अरविंद उसे काम समझा देता है और वो भी बहुत होशियार होती है। सब कुछ अच्छे से शुरू कर देती है, सर मैं आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी। अरविंद को भी आसानी हो जाती है, रीना अपना काम बखूबी कर लेती है।
रीना कभी कभी अरविंद को एक दोस्त की तरह अच्छी सलाह भी दे देती थी। अरविंद और रीना धीरे धीरे दोस्त ही बन गए थे, वहीं मन्नत की मम्मी ठीक हो रहे थे पर मन्नत का मन अभी कुछ दिन रुकने का था। अरविंद और सासु मां कोई दिक्कत नहीं थी ,सब काम ठीक से चल रहा था। सिया मम्मी से फोन पर बात कर लेती पर मन्नत की सास कुछ खास बात नहीं करती थी। उनका व्यवहार अभी भी वैसा ही था , वो जाने क्या बात मन में बसा कर बैठ गई थी।
प्रियंका और मनु की ज़िंदगी ठीक चल रही थी, माही के आने से यही फर्क पड़ा था उन्हें लगता था कि माही के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें और मेहनत करनी चाहिए। चाह कर भी उनकी किस्मत में बस गुज़ारा ही लिखा था। अरविंद एक दिन बहुत परेशान होता है, रीना के बार बार पूछने पर भी वो कहता है कोई बात नहीं है। फिर टेबल पर सिर झुकाकर बैठ जाता है। रीना जल्दी से काफी मंगाती है और अरविंद के कंधे पर हाथ रख कर कहती है सर…कोई बात हुई है एक दोस्त के नाते ही बता दिजिए। अरविंद पहले तो नहीं बताता ,फिर सुना देता है कि एक पुरानी पार्टी जिससे वो माल लेता है इस बार जितना माल उतारा वो बहुत खराब है, बहस भी नहीं कर सकता। उनका कहना है, आपकी लेबर से गाड़ी से सामान ठीक से नहीं उतारा गया होगा। रीना कहती है कोई बात नहीं सर, आप चैक तो कीजिए क्या पता बाकी ठीक हो। हां, रीना देखते हैं, सच में बाकी सारा माल ठीक निकलता है।
अरविंद का मूड थोड़ा ठीक हो जाता है, रीना …आज कुछ खास काम भी नहीं है और बाहर मौसम भी खराब लग रहा है, तुम घर जाना चाहो तो जा सकती हो। रीना जैसे ही निकलती है बारिश शुरू हो जाती है, अरविंद कहता है रीना, मैं छोड़ दूंगा तुम्हें। रीना भी मान जाती है, वो छाता साथ नहीं लाई थी सुबह तो मौसम ठीक था।
अरविंद काम निपटाकर निकलता है रीना भी साथ ही होती है, बारिश काफी तेज़ शुरू हो जाती है। अरविंद की गाड़ी का रास्ते में टायर पंचर हो जाता है, मैक्ऐनिक मिल जाता है इतनी देर दोनों पास के छेड के नीचे खड़े हैं जाते हैं। अरविंद और रीना एक दूसरे के काफी करीब होते हैं, रीना न चाहते हुए भी अरविंद की ओर आकर्षित हो जाती है। कितने हैंडसम हैं सर, शादी को अठारह साल हो रहे हैं पर कितने प्यारे हैं। वो छुप छुपकर अरविंद को देखती है, अरविंद भी उसे देखकर सोचता है…इतनी छोटी उम्र में तलाक हो गया है कैसे काटेगी ज़िंदगी अकेले। अचानक मैकेनिक आवाज़ लगाता है, हो गया ठीक सर । अरविंद रीना का हाथ पकड़कर जल्दी उसे गाड़ी में बिठाता है कहीं वो भीग न जाए , पर रीना को अच्छा लगता है अरविंद ने उसका हाथ कसकर थामा था। रीना उसके साथ खिंची, उसे देखते गाड़ी में आगे की सीट पर बैठ जाती है। वो अरविंद को दिल दे बैठती है, वो चाहती है कि बस ये सफर खत्म न हो। वो अरविंद के साथ यूंही चलती रहे, आखिर उसका घर आता है वो अरविंद को बाए कहकर चली जाती है। अरविंद भी खुद को संभालने की कोशिश करता है पर वो भी उससे प्यार करने की गल्ती न चाहते हुए भी कर देता है।
अगले दिन सुबह जब रीना आती है तो अरविंद की आंखें भी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही होती हैं। वो दोनों कुछ कहते नहीं पर समझ दोनों को आ जाता है कि क्या हो रहा है कल से। दोनों की ज़िंदगी में तूफान आ चुका था, अब तो काम करते अक्सर वैसे दोनों करीब आने का एक दूसरे को छूने का मौका ढूंढते रहते। मन्नत की मम्मी अब बिल्कुल ठीक हो जाते हैं और वो भी घर आ जाती है। घर आकर उसे एहसास होता है जैसे उसके बिना कुछ भी नहीं कमी थी, सास मैं पहले ही रूखे रूखे से बर्ताव करते थे। सिया भी दादी के साथ और पापा के साथ ज्यादा खुश रहती थी। एक अरविंद के सहारे वो खुश रहती, पर मन्नत महसूस करती है कि वो इतने दिन मायके रहकर आती है और अरविंद को कोई कमी महसूस नहीं हुई हमारी। उनका भी रंग कुछ बदला बदला सा लग रहा था, न हंसकर स्वागत किया न प्यार जताया। बस रिया से बातें की और काम पर चले गए,
दिन बीतते जाते हैं रीना और अरविंद एक दूसरे के काफी करीब आ जाते हैं। अरविंद को भी रीना का साथ उससे बात करना अच्छा लगता है। मन्नत अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होती है, पर अरविंद का बदला व्यवहार उसे समझ नहीं आता। वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि अरविंद ज़िंदगी के इस मोड़ पर किसी और को चाहने लगेंगे। रीना सब जानते हुए भी अरविंद को चाहने से खुद को रोक नहीं पाई थी, उसे प्यार के सिवा कुछ ध्यान नहीं रहा था कि वो तलाकशुदा है या मायके रहती है। इस प्यार से अरविंद का घर खराब हो जाएगा, वो इतना बेबस हो जाती है भावनाओं के आगे कि भविष्य क्या होगा वो चाहकर भी सोचना नहीं चाहती थी। सभी दिन एक से नहीं रहते,मन्नत के भी शायद बुरे दिन शुरू हो गए थे। ज़िंदगी के लिए सच ही कहा है किसी ने कब क्या रंग दिखाए पता नहीं होता। मन्नत के होंठों से हंसी अब गायब सी हो गई
रीना और अरविंद इस तरह एक दूसरे के करीब आ जाते हैं मानो अरविंद को रीना की चाहत कब से थी। सब कुछ होते हुए भी मनपसंद पत्नी मन्नत दो प्यारी बेटियां ,जाने अरविंद को क्या हो गया था जो सब भूलकर बस रीना के पीछे पागल सा हो गया था। ये बात सच है कि ज़िंदगी में कभी कुछ लोग हमारी ज़िन्दगी में आ जाते हैं जो हमें अपनी और आकर्षित करते हैं पर भावनाओं पर काबू पाना भी एक तरह से ज़िंदगी का इम्तिहान ही है। प्यार में बस अपनी प्रियतमा के अलावा अरविंद को सारे रिश्ते अपना वर्तमान फीका सा लगने लगा था। अरविंद भूल चुका था कि वो एक अच्छा पति और अच्छा पापा है, बस रीना की एक झलक पाने की चाहत में जीने लगा था। वहीं रीना भी अपने मायके मम्मी और पापा के साथ अकेले रहती थी, भैया भाभी विदेश रहते थे। रीना तलाकशुदा थी वो इस दौर से गुज़र चुकी थी ,पर पता नहीं क्यों इस रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले उसने एक बार भी अरविंद के परिवार और पत्नी के बारे में नहीं सोचा था। प्यार सच में अंधा होता है वो या तो हमें बहुत अच्छा बना देता है या उसे पाने के लिए स्वार्थी। यही सब दोनों के साथ हो रहा था।
दुनिया की परवाह किए बिना दोनों मिलते हैं, साथ समय बिताते हैं। अब तक तो अरविंद के जानने वालों बिजनेस से संबंधित लोगों को सबको पता चल चुका था कि अरविंद का किसी और के साथ भी रिश्ता है। अपने तरीके से सबने इस टापिक पर यथायोग्य बात भी की पर कुछ पक्ष में थे कि तो क्या हो गया, आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता। ये सब तो उसके शौंक होते हैं, प्यार है कभी भी किसी उम्र में भी हो सकता है, इस पर किसी का बस थोड़ी है। कुछ अरविंद के खिलाफ भी थे,पर अरविंद पर किसी के दबाव या समझाने का कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है। वो तो प्यार की दुनिया में खोया सबसे बेखबर जीने लगा था। मन्नत की स्थिति का भी कोई असर नहीं था, जिसे बीच मंझदार में ही अकेला छोड़ दिया था अरविंद ने। अरविंद अब धीरे-धीरे रीना के प्यार में इतना दिवाना हो गया था कि बस उसे अब हासिल करने का जुनून सा हो गया था। वहीं रीना की हालत भी अरविंद की तरह ही थी, घरवालों और रिश्तेदारों की परवाह के बिना आगे बढ़ गई थी। अरविंद और रीना तकरीबन हर रोज़ बहुत समय बिताते, बस रात को घर आकर सुबह नाश्ते के बाद काम पर चले जाता था। रीना भी बेसब्री से सुबह का इंतज़ार करती कि अरविंद से मिलने जाती।
वहीं मनन्त अरविंद से वो इतना प्यार करती थी ,जिसके लिए वो चुपचाप बिना शिकायत के हंसकर दिन निकाल देती थी। अब तो वो अरविंद भी अपने से नहीं लग रहें थे। सिया और रिया मां से प्यार तो करती थीं, पर साथ वो दादी और पापा का ही देती थी। मन्नत ने प्रियंका से भी इस बारे में बात की थी कि अरविंद कुछ बदले से लगते हैं, ऐसा लगता है कि उनकी ज़िंदगी में कोई और तो नहीं आ गई। मन्नत सोचकर भी डर जाती है… नहीं अरविंद ऐसा नहीं कर सकते। प्रियंका भी मन्नत को दिलासा ही देती वो भी क्या कर सकती थी। बात जब ज्यादा आगे बढ़ने लगती है, मन्नत को भी समझ आने लगता है कि अरविंद काम पर जाते वक्त बड़े खुश दिखते हैं और जल्दी निकलने की कोशिश करते हैं। बस घर आकर उदास हो जाते हैं, बच्चों से और सासु मां से भी अच्छे से बात करते हैं। मेरे साथ बस काम की बात करते हैं, हंसते हुए या दिल की बात किए कितने दिन हो गए हैं।
एक दिन वो हार कर अरविंद से पूछ ही लेती है… अरविंद मैं जब से घर से आई हूं मैं देख रही हूं तुम बदल से गए हो कोई प्यार की बात नहीं करते। ऐसा लगता है जैसे हम दोनों कितनी दूर हो गई हैं एक दूसरे से। तुम्हें मेरी कसम सच बताना, क्या तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरे अलावा कोई और आ गई हैं?? अरविंद तो जैसे प्यार में इतना पागल हो जाता है कि उसे रिश्ते भी भूल जाते हैं। वो साफ कह देता है…हां मन्नत मैं सैक्रेटरी रीना को पसंद करने लगा हूं । मैं कुछ नहीं कर सकता , मुझे नहीं पता पर मैं खुद को रोक नहीं सकता। मन्नत की आंखें से आंसुओं की झड़ी निकल आती है,लगता है सारे सपने सारी खुशियां एक ही पल में चकनाचूर हो गई। उसे समझ नहीं आता क्या कहें, अरविंद मुंह फेर के सो जाता है। सिया से भी नहीं कह सकती वो समझेगी या नहीं। मायके में मां अभी तो ठीक हुई हैं लम्बी बीमारी से, सासु मां तो आगे ही मुझे ठीक से बुलाती नहीं है।
मन्नत को लग रहा था जैसे घर का हर सदस्य हर दिवार उससे कह रही हो तेरी अब कोई जरूरत नहीं है यहां। वो बहुत रोती है और रोते-रोते सो जाती है। ऐसा काफी देर चलता रहता है, मन्नत अरविंद से बहुत बार बात करती है इस टापिक पर कि वो उसके साथ क्या कर रहा है। ये ठीक नहीं है, मैं क्या करूं कैसे सहूं ये दर्द। अरविंद तो जैसे प्यार के आगे कुछ सोच नहीं पा रहा था। मां को भी महसूस हो गया था कि अरविंद का बाहर कोई रिश्ता है जो वो घर से ज्यादा बाहर ही रहता है। अब तो घर में सबको समझ आ जाता है, सिया और रिया भी कुछ नहीं कहती। मन्नत सोचती है अरविंद नहीं मानते तो किससे कहूं कोई क्या कर सकता है इस मामले में। अरविंद की ज़िंदगी है वो क्यूं सुनेंगे किसी की, मन्नत जब आफिस जाती तो प्रियंका उसे दिलासा देती। मनु कह रहा है कि तुम सिया और रिया को लेकर कहीं और रह लो। नहीं प्रियंका मम्मी को मत सुनाना , सिया और रिया भी मेरी हालत नहीं समझती और शायद बेटियां भी उस समय सिर्फ अपना सुख देख रही थी कि पापा तो समझने से रहे। अगर मम्मी का साथ दिया तो पापा तो पहले ही अलग सा बर्ताव करने लगे थे कहीं जो नौकरों का सुख ,ऐश ओ आराम यहां मिलता है वो मां के साथ अकेले रहकर नहीं मिलेगा। कभी कभी तो अरविंद अपना गुस्सा बच्चों पर भी निकालने लगा था। मन्नत बहुत डर के टाइम निकाल रही थी पर ऐसा कब तक चल सकता था अरविंद रीना को छोड़ने को तैयार नहीं था। बच्चों को पापा के साथ घर पर ही रहना है। उनका कहना है इतना ऐश औ आराम छोड़कर वो उसके साथ क्यों जाएं। वैसे भी अरविंद बच्चों से बहुत प्यार करता है, प्यार तो मुझसे भी करता था पर जाने किस की नजर लग गई है। वो मुझे ऐसे भूलकर किसी और से प्यार करने लगेगा इस उम्र में मैंने सोचा भी नहीं था। रीना को तो सोचना चाहिए था , कभी तो मन करता है कि उसे ही जाकर पूछूं कि क्या हो रहा है ये सब। फिर सोचती हूं, जब अरविंद ही मेरे नहीं रहे तो उस बेगानी से क्या बात करूं।
मन्नत का हर दिन एक सज़ा की तरह कट रहा था, जी में आया तो फिर अरविंद के पास जाकर कहती हैं अरविंद मैं क्या करूं??? मुझे भी तो बता दो, तुम सब भूल गए इतने प्यार से मुझे ब्याह कर लाए थे। अभी भी समय है छोड़ दो उसे, भूल जाओ मेरे और बच्चों के बारे में सोचो। पर अरविंद इतना बेबस सा लग रहा था मानो किसी खिलाड़ी ने मैदान में डटने से पहले ही अपने हथियार डाल दिए हों। वो चुपचाप सब सुनता है और बस इतना ही कहता है मन्नत मैं खुद नहीं जानता मैं क्या कर रहा हूं। इस वक्त मुझे बस रीना के अलावा कोई अच्छा नहीं लगता, मैं अपनी बेटियों और मां के साथ ही रहूंगा। पर मैं खुद नहीं जानता कि तुम से क्या कहूं, मैं नहीं जानता।
मन्नत के कानों में ये शब्द तीर की तरह चुभते हैं, हंसकर जीने वाली मन्नत आंसुओं से रिश्ता जोड़ बैठी थी। दूर तक कोई हल या रास्ता नज़र नहीं आता था। सब कुछ सहज ही मानो होता जा रहा था, कोई कुछ नहीं कर पाया । सिया और रिया को बुलाकर मां ने अपनी बात समझानी चाही, और हारकर कह दिया बेटा पापा अब किसी और को पसंद करने लगे हैं। मैं अब उनके साथ सिर्फ औपचारिक रिश्ता निभा रही हूं। शायद इसमें तुम्हारी दादी की भी मूक सहमति हो , उनको वैसे भी मुझसे चिड़ सी हो गई है। मुझे पापा का भी इशारा समझना चाहिए वो साफ कह नहीं रहे ,पर वो अब रीना को ही अपनाना चाहते हैं और मुझे छोड़ना चाहते हैं। ऐसे जबरदस्ती मैं कब तक रहूंगी यहां, इतना दम भी नहीं कि रीना से लड़ूं या समझाऊं कि हमारी ज़िन्दगी से दूर चली जाए। ऐसे छीनकर मैं पापा को कब तक अपने साथ जोड़कर रख सकती हूं। तुम कहो तो मैं कहीं कमरा लेती हूं और हम तीनों चले जाते हैं। पर सिया और रिया भी नहीं मानती वो भी पापा के साथ और दादी के साथ ही रहना चाहती थी। शायद इस आराम की जिंदगी को खोना नहीं चाहती थी।
मन्नत सारी रात रोकर गुजारती है और अपनी किस्मत से पूछती है कि ये क्या लिखा था , इतनी बड़ी सज़ा क्यों मिल रही है। औरत सब बर्दाश्त कर सकती है पर दूसरी औरत का अपने पति की ज़िंदगी में आना …. नहीं, मन्नत की आज मन्नत अधूरी ही रह गई। अरविंद के साथ जीवन जीने की ख्वाहिश अब खत्म हो गई थी।फिर भी जाने किस ख्याल से मन्नत ससुराल ही रहती है,सबकी बेरूखी सहती जाती है। बेटियों की खातिर चुप रहती है कि वो अभी छोटी हैं। एक दिन प्रियंका भी पूछ लेती है मन्नत क्या हुआ ,कहां खोई रहती हो?? सब ठीक है न। आफिस में भी सब मन्नत का हाल पूछते हैं, हंसने खुश रहने वाली मन्नत अब खामोश ही हो गई थी।
मन्नत कुछ नहीं सुनाती पर प्रियंका को भनक लग जाती है कि जीजू शायद कहीं और …मन्नत मुझे लगा मामुली बात होगी तू हैंडल कर लेगी पर बात तो बहुत आगे निकल गई है। मनु को सुनाती हूं मैं ये क्या बात हुई मज़ाक है क्या?? नहीं प्रियंका …अब बहुत देर हो गई है। अरविंद बिल्कुल बदल से गए हैं, पता नहीं मेरे पीछे घर में और क्या हुआ है। सब की रजामंदी से ये सब हो रहा है या अरविंद ही बहक गया है मुझे नहीं पता। चुप कर मन्नत, प्रियंका दिलासा देती है। प्रियंका हमारे घर कोई नहीं जाएगा…पागल ऐसे ही भैया और तुम बेइज्जती कराओगे। जबरदस्ती कब तक किसी बेजान रिश्ते का बोझ ढोया जा सकता है, कोई मुझे चाहता ही नहीं। मेरी बेटियां भी मेरे साथ नहीं तो मैं किसके लिए बात करूं बार बार। कितना नीचे गिरूं अरविंद के, अब गिड़गिड़ाना ही रह गया है। कितनी बार इस टापिक पर बात की पर कोई खास जबाव ही नहीं मिलता। खुल कर अपने मुंह से बस ये नहीं कहा कि तुम अकेले इस घर से और मेरी जिंदगी से चली जाओ। घर में मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार हो रहा है। मैं ढीठ बनकर बैठी हूं प्रियंका …मेरा कोई स्वाभिमान नहीं है क्या?? कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या करूं,तुम लोगों को परेशान नहीं करूंगी। अकेले कहां जाऊं इस उम्र में किसके सहारे जीऊं। प्रियंका बहुत बार कहती है घर चलो मन्नत मम्मी और मनु को फिक्र हो जाएगी, जब तुम्हारी हालत के बारे में पता चलेगा। मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगी। मन्नत कहती है…प्रियंका अब अरविंद से बात करना बेकार है , रही बात सासु मां की अपने घर को टूटता देख वो सासु मां के पास भी जाती है,पर ऐसा लगता है मानो वो भी यही चाहते हो कि मन्नत यहां से चली जाए और जिसको भी अरविंद अपनाना चाहता है, वो इस घर में आ जाए। सासु मां का ऐसा व्यवहार देख वो और टूट जाती है। सिया आठवीं में आ चुकी थी और रिया तीसरी में थी, दोनों बात को तो समझ सकती थी पर क्या कह सकती थी। वो तो अंदर से यही चाहते हैं कि मैं उनके घर से चली जाऊं किसी तरह से भी। मैने फ़ैसला कर लिया है मैं अरविंद की ज़िंदगी से चली जाऊंगी। अगर तलाक मांगेंगे वो भी दे दूंगी। अगर बेटियों को साथ रखने की जिद्द करेंगे तो भी मान लूंगी उनकी बात। देखना चाहती हूं किस्मत मुझसे कैसे हर खुशी छीनना चाहती है।
कुछ दिन ससुराल में तिरस्कार सहकर अरविंद के एक बार साफ कहने पर कि तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता अब, मन्नत प्रियंका और मनु के बार बार कहने पर एक दिन उस घर की दहलीज को हमेशा के लिए पारकर आ जाती है। तलाक पर भी बिना कुछ कहे साईन कर देती है, कोई डिमांड या केस फाइल नहीं करती।
प्रियंका मन्नत को बहुत सहारा देती है, पर मन्नत मम्मी से भी और मनु भैया से भी कह देती है वैसे आपसे मिलने आया करेगी और नौकरी भी करती रहेगी, पर वो हमेशा के लिए यहां नहीं रहेगी। अपना इंतज़ाम कहीं और करेगी। जो किस्मत ने दिया है उसी को लेकर अपनी ज़िंदगी जीएगी।
प्रियंका और मनु मन्नत की ज़िद के आगे हार जाते हैं,वो एक फ्लैट लोन पर ले लेती है और मायके से थोड़ा दूर लेकर रहती है। शुरू में तो आंसुओं को रोक पाना बहुत मुश्किल होता है, बच्चों की याद भी सताती है। धीरे-धीरे आदत हो जाती है, कोई भी ससुराल से उसका हाल नहीं जानता है। फिर उसे भी मोह खत्म हो जाता है, वो मुस्कराकर जीना सीख लेती है और एक एन जी ओ के साथ जुड़ जाती है जो उस जैसी महिलाओं के लिए कुछ अच्छे काम करके उन्हें जीना सिखाती हैं और आत्मनिर्भर बनना सिखाती हैं।
हालांकि ज़िंदगी में जो खालीपन रह जाता है उसे भरना मुश्किल होता है पर … ज़िंदगी में किसी मोड़ पर क्या हो जाए ये तो कोई नहीं जानता। दो ही विकल्प बचा जाते हैं या हम हार कर रोते रहें और किसी का इंतज़ार करें कि कोई हमारे लिए कुछ करेगा या हालात को देखते हुए फैसला लेकर आगे बढ़ें और जैसे हालात हो उसी में जीना भी सीखें और जीने लायक भी बनाएं। प्रियंका ,मनु और मम्मी खुश तो नहीं होते मन्नत की हालत देखकर। पर उनको ये तसल्ली हो जाती है कि मन्नत ने सब हारकर भी जीना सीख लिया।
अरविंद के बारे में भी उसको पता चलता है कि वो और रीना शादी कर चुके थे। सिया और रिया भी खुश थीं, सासु मां भी ठीक थे। फर्क पड़ा था किसी की जिंदगी में तो वो मन्नत की थी, पर उसने भी हालात के साथ समझौता करके जीना सीख लिया था।पर जैसे जैसे सिया और रिया बड़ी होती जाती हैं उन्हें सब समझ आता है कि क्या हो गया , हमने भी अपनी मम्मी का साथ नहीं दिया तो वो बहुत बुरा महसूस करती हैं और हिम्मत करके एक दिन नानी के घर मम्मी से मिलने आती हैं। अपनी मम्मी से झिझकते हुए गले मिलती हैं, फिर रोने लगती हैं, मम्मी करता हम आपसे मिलने आ सकते हैं। मन्नत सब बुलाकर उन्हें गले से लगा लेती है। नहीं बेटा इसमें तुम्हारा कोई कुसूर नहीं शायद हालात और तुम्हारी उम्र ही ऐसी थी जो आगे का और कुछ सोच नहीं पाई। घर में सब कैसे है ?? मन्नत जाने क्यों पूछ लेती है,अब वहां कोई हक ही नहीं रहा न अरविंद पर न घर पर । सब ठीक है मम्मी पर हमें आपकी बहुत याद आती है, हम अब क्या करें, रीना आंटी हमारे साथ रूखा सा व्यवहार करती है,पापा के सामने अच्छा करती है पर बाद में बदल जाती है। दादी भी चुपचाप सब देखकर कुछ कहती नहीं है। अच्छा बेटा अब मेरे से मिलने आई हो तो और भी कोई बात सुनाओ क्या करती हो, आगे कैरियर का क्या सोचा है। मम्मी हम पापा और दादी से पूछ कर आपसे मिलने आए है तो क्या आज हम आपके साथ रहें फिर ढेर सारी बातें करेंगे। इतनी देर में प्रियंका भी आ जाती है… नमस्ते मामी सिया और रिया को इतनी देर बाद यूं अचानक आते देखकर प्रियंका हैरान हो जाती है पर समय की नज़ाकत को देख कुछ कहती नहीं है। आज कितने दिनों बाद मन्नत के होंठों पर यूं मुस्कुराहट देखी थी और चेहरे पर चमक थी। सिया और रिया बोलो तुम क्या खाओगी और प्रियंका किचन में कुछ खाने को लेने जाती है। मन्नत की तबीयत कुछ देर से ठीक नहीं थी इसलिए वो मायके ही रह रही थी और आफिस में भी छुट्टी रखी थी। फ्लैट में गए बहुत दिन हो गए थे । । मम्मी,प्रियंका और मनु भैया उसे जबरदस्ती ले आए थे और कहा था कि जब तक ठीक न हो जाए जाने नहीं देंगे। मन्नत सिया और रिया को कहती हैं कि वो थोड़ी देर और रुककर घर चली जाएं,पता नहीं पापा और दादी क्या कहें। फिर आ जाना बेटा मिलने। सिया और रिया मामी के साथ ढेर सारी बातें करती हैं और चाय पीकर घर चली जाती हैं।
अब तो ये सिलसिला शुरू हो जाता है, मन्नत कुछ दिन आराम करती है और जब ठीक हो जाती है तो वापिस अपने फ्लैट चली जाती है। प्रियंका और मनु भी बीच में मिलने आ जाते थे। माही भी अपनी बुआ का बहुत ध्यान रखता था। सिया और रिया का जब भी मिलने का मन होता था वो बेझिझक अपनी मम्मी से मिलने आ जाती थी घर पर रीना, पापा या दादी भी कुछ ऐतराज़ नहीं करते थे क्योंकि अब तो सब बदल गया था। सिया और रिया भी बड़ी हो गई थी वैसे सब समझती थी तो रोकने का प्रयास नहीं किया। मम्मी से मिलना घंटों बातें करना दिल की बच्चों को अच्छा लगता था, मन्नत आफिस से आती और अपना काम निपटाती तो सिया और रिया फोन करके आ जाती थीं। एक दिन सिया ने हिम्मत करके मम्मी से कह दिया हम आपको घर वापिस ले जाएंगे, आप चलो घर वापिस। मन्नत की आंखों में सारी पुरानी बातें दोहरा जाती है, नहीं बेटा अब ये मुमकिन नहीं किसी भी सूरत में नहीं।
अब बहुत देर हो चुकी है हमारे सबके रास्ते अलग हो चुके हैं, कोई रास्ता नहीं जो वापिस वहीं जाता हो यहां से मैं अब दूर आ गई हूं। मन्नत अब इसी तरह अपनी ज़िंदगी काट देती है। महिलाओं के लिए सोशल वर्क करना अपने आफिस का काम करना सबकी मुसिबत में साथ देना और मुस्कुरा कर जीवन के कटु सत्य के साथ जीना मन्नत ने सीख लिया थाऔर ज़िन्दगी को नए सिरे से जीना शुरू कर दिया था। जब ज़िन्दगी शून्य दिखती है तब भी उम्मीद की किरण रह जाती है।
समाप्त।
— कामनी गुप्ता