सामाजिक

रक्तदान दिवस पर आलेख

“आओ छोटा सा पुण्य हम भी कमाए
रक्तदान कर किसी की जान बचायें ।”

14 जून को पूरे विश्व में ‘रक्तदान दिवस’ मनाया जाता है। ऑस्ट्रिया के महान वैज्ञानिक कार्ल लैंड स्टेनर के जन्मदिन के अवसर पर यह दिवस मनाया जाता है, जिन्होंने रक्त को समूह में बांटा था। उन्हें अपनी इस उपलब्धि के लिए 1930 में नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
रक्तदान महादान कहलाता है क्योंकि रक्तदान द्वारा आप किसी व्यक्ति की जान बचाते हैं। रक्त की आवश्यकता तब पड़ती है ,जब किसी दुर्घटना या सर्जरी में काफी खून बह गया हो या किसी बीमारी की वजह से शरीर में रक्त की कमी हो गई हो।
खून का रंग हर व्यक्ति का समान है। ये तो हम इंसानों के बनाए हुए जाति और मजहब की बेड़ियां हैं जो हमें एक दूसरे से अलग करती हैं। रक्तदान अजनबी लोगों की बीच एक अटूट संबंध जोड़ देता है क्योंकि जान बचाने से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति मेडिकल परीक्षा के उपरांत रक्तदान कर सकता है। शहरों में ब्लड बैंक की व्यवस्था होती है जहां पर रक्त को निश्चित तापमान में सुरक्षित रख लिया जाता है। रक्तदान से किसी भी तरह की कमजोरी नहीं होती और रक्त स्वच्छ और पतला होता है,विषैले पदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं और निकाले गये रक्त की मात्रा पुनः बन जाती है। खून पतला होने से हम हृदय रोग और कैंसर जैसी कई बीमारियों से बचे रहते हैं। ‘O नेगेटिव’ ब्लड ग्रुप यूनिवर्सल डोनर है।
दुनियाभर में लाखों लोग रक्त की कमी के कारण असमय काल के ग्रास बनते हैं। इधर कोरोना संक्रमण की वजह से रक्तदान जैसे कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जा सकते हैं लेकिन जागरूकता का प्रसार तो किया जा सकता है। कल्पना कीजिए, किसी का प्रियजन रक्त की कमी से जूझ रहा हो और रक्त की व्यवस्था ना हो तो क्या बीतती होगी उस पर।
रक्त ऐसी चीज है जिसे बनाया नहीं जा सकता।
यदि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो यह पुण्य का कार्य अवश्य कीजिए। इस महादान में शामिल होकर किसी के जीवन का जरिया बनिये। दुआओं का अनंत आकाश आपके सिर पर होगा और अंतर्मन में खुशी का सागर हिलोरे लेगा।

— अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।