लेखसामाजिक

बेनामी संपत्ति : लालची मन

प्रायः गाँव व कसबों में ऐसी इमारते खड़ी हैं अथवा जमीन खाली पड़ी हैं, जिनके कोई देखनहार नहीं हैं जो न तो टैक्स चुकाते हैं, न ही जमीन की उर्वरता से फसल काटते हैं, न ही उनमें शाक-भाजी उगाते हैं। बड़े-बुजुर्ग भी ऐसे बेनामी-संपत्ति के बारे में नहीं बता पाते हैं ।

ऐसी संपत्ति का ढोल पीटकर नीलामी की जाय, अगर इसपर भी कोई दावा ठोंकने वाले प्रकट नहीं होते हैं,तो इसे राष्ट्रीय-संपत्ति घोषित कर देश के विकासार्थ चलन में लायी जाय । हालांकि कुछ संपत्तियाँ पारिवारिक-विवाद के कारण भी खाली पड़ी रहती हैं, तब पंचायत की भूमिका बढ़ जाती है । इसके साथ ही घर पर सोने-चांदी व ज़ेवरात रखने की प्रथा भी ख़त्म हो ।

जो भेदभाव बढ़ाती है और दूसरों को ललचाती है । इसलिए हम ‘संतोष’ को परम धन क्यों नहीं मान सकते हैं ?

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.