बेनामी संपत्ति : लालची मन
प्रायः गाँव व कसबों में ऐसी इमारते खड़ी हैं अथवा जमीन खाली पड़ी हैं, जिनके कोई देखनहार नहीं हैं जो न तो टैक्स चुकाते हैं, न ही जमीन की उर्वरता से फसल काटते हैं, न ही उनमें शाक-भाजी उगाते हैं। बड़े-बुजुर्ग भी ऐसे बेनामी-संपत्ति के बारे में नहीं बता पाते हैं ।
ऐसी संपत्ति का ढोल पीटकर नीलामी की जाय, अगर इसपर भी कोई दावा ठोंकने वाले प्रकट नहीं होते हैं,तो इसे राष्ट्रीय-संपत्ति घोषित कर देश के विकासार्थ चलन में लायी जाय । हालांकि कुछ संपत्तियाँ पारिवारिक-विवाद के कारण भी खाली पड़ी रहती हैं, तब पंचायत की भूमिका बढ़ जाती है । इसके साथ ही घर पर सोने-चांदी व ज़ेवरात रखने की प्रथा भी ख़त्म हो ।
जो भेदभाव बढ़ाती है और दूसरों को ललचाती है । इसलिए हम ‘संतोष’ को परम धन क्यों नहीं मान सकते हैं ?