ग़ज़ल
ए खुशी तुझे ता – उम्र तलाशा है बहुत
नहीं नसीब में तू पर तुझे चाहा है बहुत
ये मिट्टी यूँ ही नहीं नम है इस वीराने की
सालों पहले यहां शायद कोई रोया है बहुत
चलूँ किस सिम्त कोई राह नज़र नहीं आती
चिराग दिल का जलाओ कि अँधेरा है बहुत
साथ खुद्दारी के है लाज़मी मक्कारी भी
इस शहर का हर शख्स कमीना है बहुत
रईसों से रईस हूँ गरीब होकर भी
उन्हें दरिया भी कम है और मुझे कतरा है बहुत
— भरत मल्होत्रा