कविता

पत्नी की अफिसरी

यह है कटु सत्य
नहीं किसी में दम
बाहर आकर खुल के बोले
करो रक्षा
मेरी पत्नी से
मैं हूं उसका मारा
जब मैं बोलूं तो
वोह बोले
चुप रहो
तुम हो नादान
यह तो नहीं लिख सकता
वो कहे तुम हो गधे
तुम्हें नहीं है कुछ पता
जाओ अपना काम करो
बड़े आए मुझे सिखाने को
अपनी अफसरी बाहर जड़ों
मैं हूं इस घर की अफसर
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020