बिहुला-विषहरी और मंजूषा चित्रकला
लोक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव की मानस पुत्री ‘मनसा’ व साँप से खेलने के कारण नाम ‘विषहरी’ के अहं को, जो यह समझती थी कि सभी देवी-देवताओं की पूजा होती है, उनकी क्यों नहीं होती ? — इस अहं की टकराहट चंपानगर के बड़े व्यवसायी चंद्रधर से येन-केन पूजा लेने के लिए हद तक चली जाती हैं और उनके एकमात्र पुत्र बाला लखींद्र को साँप से डंसवा कर मार डालती है, तब लखींद्र की धर्मपत्नी बिहुला अपने पति के मृत शरीर को लेकर खुद (सदेह) यमराज के पास चली जाती है, जहाँ चंद्रधर सौदागर द्वारा मनसा की बाँये हाथ से पूजा किये जाने पर ही यमराज बाला लखींद्र को जीवित कर देता है । कथा-सारांश यही है !
सती बिहुला-विषहरी की कथा को लेकर भागलपुर और निकटवर्ती क्षेत्र में ‘सिक्की’ से ‘मंजूषा चित्रकला’ भी प्रसिद्ध है! हमारे क्षेत्र में ‘चिकना’ (तीसी) भरी रोटी, कच्चू पत्ता की पेटी की सब्जी प्रचलित है । कहा जाता है, यह भादो में साँप जनित घटनाओं से निजात पाने हेतु पारम्परिक व्रत भी है ।