मैं धरा अधीर हूँ
पीड़ित मन की पीर हूँ।
सोखती हूँ हर व्यथा और
जमा गई जो नीर हूँ ।
आत्मग्लानि से भर उतरे
आत्मा में तीर हूँ ।
रोकूँ मैं भावों के बाढ़
नहीं लक्ष्मण लकीर हूँ ।
…. मैं धरा अधीर हूँ।।
मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे -
छंदमुक्त हो या छंदबध
मुझे क्या पता
ये पंक्तिया बस एहसास है
तुम्हारे होने का
तुम्हे खोने का
कोई एहसास जब जेहन मे
संवरता है
वही शब्द बन कर कागज पर
निखरता है ।
धन्यवाद :)