ओढ ली चूनर धानी
ओढ़ ली चूनर धानी वसुधा ने आज फिर
धरती न धीर मन मौन इतराती है।
अंबर नत होकर चूमता कपोल जब,
श्यामल तन खिले सुमन हरसाती है।
मोहित मदन मन पछुवा पवन बन,
बिखेरता सुगंध मंद धरा मुस्काती है।
पावस का वारि जल करता उर विकल,
मिलन के स्वप्न नैन धरती सजाती है।
•••
काम मन भरा नर्तन करने लगी धरा,
विरह व्याकुल नभ मल्हार गाने लगा।
दूरियां हैं देह-गेह की पर मन की कहां,
मिलन मधुमास का वितान छाने लगा।
प्रेम में प्रकृति ने मिलन के हैं छंद रचे,
खुशियां बांटने जग, बादल जाने लगा
पाकर नेह निमंत्रण प्रेयशी वसुधा का,
हर्षित हो गगन प्यार बरसाने लगा।
— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’