कुण्डली/छंद

ओढ ली चूनर धानी

ओढ़ ली चूनर धानी वसुधा ने आज फिर
धरती न धीर मन मौन इतराती है।
अंबर नत होकर चूमता कपोल जब,
श्यामल तन खिले सुमन हरसाती है।
मोहित मदन मन पछुवा पवन बन,
बिखेरता सुगंध मंद धरा मुस्काती है।
पावस का वारि जल करता उर विकल,
मिलन के स्वप्न नैन धरती सजाती है।
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काम मन भरा नर्तन करने लगी धरा,
विरह व्याकुल नभ मल्हार गाने लगा।
दूरियां हैं देह-गेह की पर मन की कहां,
मिलन मधुमास का वितान छाने लगा।
प्रेम में प्रकृति ने मिलन के हैं छंद रचे,
खुशियां बांटने जग, बादल जाने लगा
पाकर नेह निमंत्रण प्रेयशी वसुधा का,
हर्षित हो गगन प्यार बरसाने लगा।
— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]