लघुकथा

आज़ादी!

आत्माराम ने एक पिंजरे में कैद तोता ख़रीदा। वे शहर के प्रसिद्ध राजनेता थे। उनके यहां दिन भर लोगों का तांता लगा रहता था। तोता हाल में टंगा हुआ रहता था। जब नेता जी घर पर नहीं होते थे तो हाल में दिन भर टी वी चालू रहता था। कुछ टी वी देखते हुए तो कुछ दिन भर आने जाने वालों का निरीक्षण करके तोता अच्छी तरह सीख गया था कि किस व्यक्ति को किस तरह का राम – राम करना है। जैसे सरदार जी को सत श्री अकाल ! धार्मिक प्रवृति वाले हिंदूओं को जय श्री कृष्ण या जय श्री राम ! मारवाड़ियों को मुजरोसा ! मुसलमान को सलाम वालेकुम्म ! अलग – अलग पंथों को मानने वालों को जैसे राधा स्वामी या धन निरंकार ! किसी को नमस्ते तो किसी को नमस्कार ! आगंतुक तोते के प्रेमपूर्ण बर्ताव से बेहद ख़ुश होते थे। घरवाले तोते का पूरा खयाल रखते थे। नौकर समय पर उसे खाना – पीना देते थे। इसके बावजूद वो इस कैद से आज़ाद होना चाहता था। नेता जी की अनुपस्थिति में कोई घर पर आता तो मौका पाकर, अपने मीठी, मधुर स्वर में उनसे बिनती करता कि उसे पिंजरे से निकालकर स्वतंत्र करें। नेता जी के नाराज़ होने के डर से वो लोग चाहकर भी तोते की मदद नहीं कर पाते थे। इससे तोता मायूस हो जाता।
एक दिन नेता की अनुपस्थिति में आलोक हिंदुस्तानी उनके घर आया। माथे पर लंबा तिलक लगा हुआ था। गले में भगवा रंग का मफलर टांग रखा था। तोते ने तत्परता से उससे कहा जय श्री राम ! जवाब में उसने भी जोश पूर्ण आवाज़ में कहा जय श्री राम ! आलोक समय बिताने के लिए सोफे पर बैठकर टी वी देखने लगे । उन्होंने देखा भारतीय लोग एक पड़ोसी देश के सामानों की होली जला रहे हैं। जोर – जोर से उस देश के विरूद्ध नारे भी लगा रहे हैं। ये दृश्य देखकर आलोक हिंदुस्तानी की भौवें तन गई। आंखों में अंगारे बरसने लगे। चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। तोते ने ताड़ लिया कि लोहा गर्म है, अब हथौड़ा मार देना चाहिए। उसने आलोक हिंदुस्तानी से पूछा, “ क्या आप देशप्रेमी हैं ? “ “ हां, बिल्कुल। हर हिंदुस्तानी को अपने देश से प्रेम होना चाहिये। भारत देश हमारी आन – बान – शान और पहचान है। “ “ जिस तरह क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के चंगुल से देश को स्वाधीनता दिलवाई थी, क्या उसी प्रकार मेरी भी मुक्ति करेंगे ? मैं इस जेल से निकलकर खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं। मेरे दिल से सदा दुआएँ निकलेंगी आपके लिए। “ तोते की बातों ने आलोक पर अच्छी छाप छोड़ी। उन्होंने पिंजरा खोलकर उसे उड़ने दिया। तोते ने आभार प्रकट करते हुए कहा जय श्री राम ! तोते के ख़ुशी से चहकने की आवाज़ें सुनकर आलोक को भी आनंद आया। तोता पंख फैलाकर आकाश में ऊंचा उड़ चुका था।
– अशोक वाधवाणी

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल [email protected]