तीन छंद
1
पेट में संभालती लहू से है पालती ,इसकी आशीष से यह धरा मुस्काती है ।
सृजन की बेल यह दीए में यूं तेल, यह ,इसके आलोक में यह धरा उज्जियाती आती है ।।
जीवन में रंग देती जीने के यह ढंग देती, जीवन की धरती को प्रेम से महकाती है ।
इसके बिना शिव शव रह जाता है ,उजले संसार की यह दीया -तेल- बाती है।।
2
मुश्किलों से जूझ कर ,निज सुख भूल कर, खड़े हैं जो दिन रात उनको सलाम है ।
राष्ट्र के सपूत बन, सेवा-देवदूत बन , सेवारत दिन रात उनको सलाम है ।।
मान कर निज धर्म,कर रहे नित्य कर्म ,भूल कर झंझावात उनको सलाम है ।
न ही फिक्र आह की ,न ही चिंता वाह की ,सब देशहित जज्बात उनको सलाम है ।।
3
वक्त की आंधियों में यह भी उड़ जाएगी मुट्ठी भर राख का गरूर मत कीजिए
चार दिन चांदनी के यूं ही कट जाएंगे दुनिया के रंगों पर यूं ही मत रीझिए ।।
ये दौलतें ये शोहरतें न कभी साथ जाएंगी मय है ये दुनिया की कभी मत पीजिए
दिया किरदार है जो मालिक ने तुमको वह किरदार कभी मैला मत कीजिए ।।
— अशोक दर्द