व्यंग्य कविता।
अपने वजूद का जब भी सवाल होता है।
वतन का फिर कहां उनको ख्याल होता है।
खूब लूटा जिन्होने वतन को इतने सालों में;
हार गए तो अब मंहगाई पर बवाल होता है।
राजनीति ने जिन्हें कहीं का न छोड़ा फिर;
भूगोल का पूछे कोई तो कैसे मलाल होता है।
हर रोज़ बेतुकी बातें ट्विटर पर बरसती है;
आलीशान बंगले में बैठ क्या ऐसा हाल होता है।
आपसी रंजिश में शब्दों की मर्यादा न लांघो;
आम जनता में यूं अविश्वास बहाल होता है।
है अगर अब भी चिंता वतन की तो कह दो;
एक हैं हम! वतन की आन का सवाल होता है।
जय हिन्द !
कामनी गुप्ता***
जम्मू !