राष्ट्रहित
राष्ट्र हित
————————-
सर्वोपरि है राष्ट्र हमारा ,सर्वोपरि यह देश है |
इसकी रक्षा के हित धारा,हमने यह नर वेश है |
काट गुलामी की जंज़ीरे,लहराया है ध्वज अपना |
नई डगर नूतन मंज़िल गढ़ , डंका जग में बजा दिया |
संकट में हे वीरों तुमने ,धीरज कभी नहीं खोया |
सिंचित धरती करी लहू से ,प्रगति बीज उसमे बोया |
विकट समय गहराया संकट,कठिन वक्त फिर आन पड़ा |
शत्रु अदृश्य खा रहा जीवन,डगर डगर पर तना खड़ा |
संकल्पों का दीप जला कर,उजियारा करना होगा |
धीरज, धर्म, कर्म के रथ चढ़,दुश्मन से लड़ना होगा |
भारत कभी नही हारा है, जीत उसी की होनी है |
सत्य सनातन ही साश्वत है,सुयश कीर्ति दिन दूनी है|
घर में रह कर्तव्य निभाओ दुख घन भी छँट जाएंगे |
दूरी रख गर वार करोगे,शत्रु नही बच पाएंगे |
कर्म वीर योद्धाओं तुमको शत शत नमन ‘मृदुल’ करती |
अक्षय होगा देश हमारा, आस विजय निश्चित करती |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल
लखनऊ (यू पी)
स्वरचित