सौंदर्य परक दोहे
नील कमल से नैन हैं, पलकें पात समान।
मधुर अधर मकरन्द हैं, रम्भा रूप समान।1
चन्द्रानन सा गोल है, पूनम सी है देह।
मंगल सी बिंदिया लसे, केतू हुआ विदेह।2
स्वर्णलता सी देह पर, मधुर अधर से फूल।
दिव्य फलों से दिख रहे, कर्ण रहे जो झूल।3
रजताभा से माथ पर, अलक गयी है छूट।
बंक भृकुटि से लग रही, गयी पिया से रूठ।4
अक्ष नुकीले तीर से, मारन में है दक्ष।
बिन घालन घायल भये, जाके गए समक्ष।5
डॉ. शशिवल्लभ शर्मा