डी.टी सी. (छप्पय छंद)
डी.टी सी. की बस में चढ़कर, अपनी शामत आई,
मैं हंसने की इच्छा रखता, आती रोज रुलाई.
आती रोज रुलाई, निगोड़ी बस नहीं आती,
आती है तो बिना रुके ही, वह आगे बढ़ जाती.
लटक-लटककर किसी तरह, पकड़ी तो बस ऐसी,
गिरे, टांग की हड्डी टूटी, वाह री (कयामत) बस डी.टी सी.
19.1.1985
छंद की परिभाषा-
वर्णो या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास को छन्द कहा जाता है।
छंद के अंग——-मात्रा——–
1. मात्रा : ह्रस्व स्वर जैसे ‘अ’ की एक मात्रा और दीर्घस्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । यदि ह्रस्व स्वर के बाद संयुक्त वर्ण, अनुस्वार अथवा विसर्ग हो तब ह्रस्व स्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है ।