लड़की या संपत्ति
एक लड़की की जिंदगी घर से शुरू होकर घर पर ही खत्म हो जाती है ।आज भी एक लड़की की पढ़ाई लिखाई से ज्यादा उसके घर के कामों को महत्व दिया जाता है ।उसकी ईमानदारी से ज्यादा उसके रूप और सौंदर्य को ज्यादा अहमियत दी जाती है । शादी से पहले एक हँसती खिलखिलाती लड़की जब माँ बाप की देहरी को छोड़कर ससुराल जाती है तो उससे हजारों उम्मीदें लगाई जाती हैं जैसे कि एक सास जब बहू बनकर आयी थी तो एकदम हर मायने में दक्ष थी ,बस बैठे बैठे यही सोच रही थी की अचानक अपनी धेवती की बात याद करके एक लड़की के जीवन का सत्य याद आ गया ।मेरी छोटी सी धेवती को सजने संवरने का बहुत शौक है । अक्सर जब भी माँ को तैयार होते देखती है तो खुद भी वो सब कुछ लगाने की जिद करती है ।एक दिन परेशान होकर मेरी बेटी ने उससे कह दिया कि जब तेरी शादी हो जाएगी ,तब मेकअप करना ।इतना सुनते ही उसे जैसे जिद आ गयी ।अब तो हर बार माँ से यही जिद करती माँ मेरी भी शादी करा दो ,फिर मेरे लिए भी वो सब चीज लाना जो आप लगाती हो । दिव्या अक्सर इस बात को हँसकर टाल जाती ।एक दिन मेरी धेवती उसके पीछे पड़ गयी माँ मुझे भी मेकअप करना है, मेरी शादी करा दो ।बेटी ने कुछ सोचते हुए एकदम कह दिया ,जब शादी हो जाती है तो माँ बाप से मिलने के लिए एक साल का इंतजार करना पड़ता है । ये सब सुनते ही कमरे में जैसे नीरवता छा गयी और गुड़िया सिसकते हुए बोली ,माँ मुझे शादी नहीं करनी !मुझे तो आपके साथ रहना है ।अब मैं आपसे कभी जिद नहीं करूँगी ।आखिर क्यों ?एक बेटी के दर्द को भुला दिया जाता है ?क्या एक लड़की के लिए इतने प्रतिबंध जायज हैं ?क्या एक लड़का अपने माँ बाप से इतने समय तक बिना मिले रह सकता है ? लड़के और लड़की के जीवन में इतना अंतर क्यों ?आज हमारा समाज इतना तरक्की कर चुका है लेकिन लड़का -लड़की ,बहू-बेटी के लिए नियम आज भी वही दकियानूसी हैं ।एक छोटा सा बच्चा इस बात की गहराई तक पहुँच सकता है फिर हम बड़े इतने अनजान क्यों या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं ?क्या लड़की सिर्फ एक संपत्ति है जिसकी खुद की कोई इच्छा नहीं?
— वर्षा वार्ष्णेय