गज़ल
इस दौर-ए-परेशानी में राहत ले के आया हूँ
नफरत के शहर में मैं मुहब्बत ले के आया हूँ
हैं तेरे चाहने वाले हज़ारों है खबर लेकिन
तुझे अपना बनाने की मैं हसरत ले के आया हूँ
धोने के लिए अपने पुराने सब गुनाहों को
मैं आँखों में दरिया-ए-नदामत ले के आया हूँ
मुड़ मुड़ के मुझको क्यों न देखें लोग महफिल के
शरारत तितली से, गुल से नज़ाकत ले के आया हूँ
आखिरी बार तेरे दोश पर सर रख के रोने को
मौत से चंद लम्हों की इज़ाज़त ले के आया हूँ
— भरत मल्होत्रा