भाई
लघुकथा
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भाई
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किसी बात पर बच्चों की लड़ाई में पहले उनकी माँएँ फिर पिता भी कूद पड़े। मामला थाने तक पहुँच गया। थानेदार ने समझा बुझाकर दोनों भाइयों में सुलह करा दी। पर इस घटना के बाद दोनों भाई एक दूसरे के पक्के दुश्मन बन गए।
घटना के सालों बाद जब बड़े भाई को पता चला कि छोटे की दोनों किडनियाँ खराब हो गई हैं और वह जीवन और मौत से जूझ रहा है, उसे रहा न गया।
अस्पताल जाकर अपनी एक किडनी छोटे भाई को देकर उसकी जान बचाई। होश में आने पर भीगे आँसुओं से छोटे भाई ने कहा, “भैया आप…”
“चुप रह छोटे। अभी तू आराम कर। इतनी जल्दी माँ से मिलने तुझे अकेले कैसे जाने देता। तुम्हें याद है माँ हर रोटी के बराबर दो-दो टुकड़े कर हमें खाने को देती थी, ताकि हमें याद रहे कि हम एक ही डाल के दो पात हैं….।”
पीछे खड़े उनके परिवार के सबकी आँखें गीली थीं।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़