5 विपर्यय कविताएँ
1.
गिनती की राह
कर्नाटक में
2019 के नाटक का पटाक्षेप
इसतरह हुआ
कि कुमारस्वामी अब
सीएम से सिर्फ एमएलए रह गए !
कर्नाटक के बहाने
है उलाहने,
नहीं कराहने !
गिनती की राह,
नहीं है चाह !
2.
हम लापरवाह
मनिहारी में आज
‘भरदम’ बारिश हुई….
मैंने और आशीष भाई ने
भरदम, भरपेट्टा
‘कचड़ी’ और ‘पकौड़ी’ धसेड़े !
मुँह में एक-दूसरे को
ठूँस-ठूँस घुसेड़े !
चाहे हो बदहजमी,
उसकी क्या परवाह ?
हम हैं बेपरवाह !
3.
लोकमान्य तिलक
लाल बाल पाल
के ‘बाल’
लोकमान्य केशव गंगाधर तिलक
के जन्मदिवस पर नमन
और सादर श्रद्धांजलि !
वे गणित शिक्षक, अधिवक्ता,
संपादक, समाजसेवी,
स्वतंत्रता सेनानी थे
यानी उनके ही कथन-
‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’
के प्रसंगश: उन्हें सादर नमन !
4.
अविराम ज्ञानागार
उनके आगमन से मंत्रसिक्त नहीं,
मंत्ररिक्त होती है !
क्या पता यह मंत्र अभिलाषाबद्ध हो ?
विलासारुद्ध हो !
ज्ञानातिरेक के विषयबद्ध में जुड़कर
यह आधारिक संरचना के प्रसंगश: हो !
ज्ञान के पारावार,
अविराम ज्ञानागार लिए !
5.
तयशुदा प्राणी
उनकी दृष्टि विचलित नहीं है,
अपितु किसी और शक्ति से
संचालित है !
आकुलता और व्याकुलता के बीच
हम आबद्ध हो सकते हैं,
तयशुदा सच के साथ !
तयशुदा प्राणियों के बीच !
अविचलित सानियों के बीच !
वृहदतम आंकड़ें के सन्नद्ध !