अब तलक
थिरक रहे थे,
अब तलक
यह पांव धुन पे तेरी
तेरी धुन पर नाचने का
… चलन मैं छोड़ रही हूँ।
दिल छलनी हो जाता है
जब बोलते हो –
“दिन भर क्या करती हो ?”
बन कठपुतली ताने सुनने का
… क्रम मैं तोड़ रही हूँ।
पावों की पायल मेरी
सरगम लगती थी अब तलक
“अब लगने लगी हैं बेड़ियां”
इन बेड़ियों में जकड़े रहने का
… भ्रम मैं तोड़ रही हूँ।
— अंजु गुप्ता