तुम हो!
मेरी हर धडकती सांसों मे तुम हो!
पुष्पो कि महकती खुश्बू मे तुम हो!
कोयल के कुहू कुहू मे तुम हो!
शेर और शायरी में तुम हो!
खिलती हरियाली, नाजुक पोधै मे तुम हो!
आकाश में उड़ते,उन पंछियों सरसराहट मे तुम हो!
प्रणय कविताओं के वर्णन मे तुम हो!
चित्रकारों कि चित्रकारी मे तुम हो!
अर्धनारीश्वर कि मुरत में तुम हो!
सुरज कि किरनो मे तुम हो!
हर मौसम कि खास अदाओ मे तुम हो!
मेरी हर प्यारी सी मुस्कान मे तुम हो!
लगायी हुई लाली, और मिल मे तुम हो!
महकते कजरे मे,चूनर के रंगो मे तुम हो!
मेरी हर धडकती सांसों मे तुम हो!
मेरी शरमाने कि हरेक अदाओ मे तुम हो!
मेरे मन के गुनगुनाते गानों मे तुम ही तुम हो!
मुझ से लेकर तुम तक आ रही हवाओ मे तुम हो!
— निधि कुंवराणी