कविता

सदियाँ गुज़ार रहे हैं

क्यों याद करें गुज़रे वक़्त को,
ये वक़्त है जो गुज़र जाता है,
जिस वक़्त की सीमा लांघ गये,
वो वक़्त फिर नहीं आता है।
क्यों याद करें गुज़रे वक़्त को…
ये वक़्त है जो गुज़र जाता है।
जिस राह निकल कर गया वक़्त,
वो राह फिर नहीं दोहराता है,
जो आज है, वो कल क्या होगा,
यही तो वक़्त बतलाता है।
क्यों याद करें गुज़रे वक़्त को…
ये वक़्त है जो गुज़र जाता है।
क्यों कहूँ , कैसे वक़्त गुज़ारुं मैं,
बस हर दिन सपने बुनती हूँ,
इन सपनों में ही मेरा वक़्त,
हर दिन यूँ ही गुज़र जाता है।
क्यों याद करें गुज़रे वक़्त को…
ये वक़्त है जो गुज़र जाता है।
कामयाबी की राह सदा….,
हिम्मत के दम पर चलती है,
राह जैसी जो पकड़ता है,
मन्ज़िल वैसी ही पाता है।
क्यों याद करें गुज़रे वक़्त को…
ये वक़्त है जो गुज़र जाता है।
—- सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)