सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 2
हार को ही उपहार बना ले (कविता)
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
खो गया है एक अवसर, ग़म नहीं,
मिला था कोई अवसर, यह भी कोई कम नहीं!
अवसरों को अपनी ओर आकर्षित करके,
अवसरों का एक नया स्त्रोत बहा ले,
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
आ गया कोई नया संकट, ग़म नहीं,
अनेक संकट आकर टल गए, यह भी कोई कम नहीं!
हर संकट सबक कोई सिखा जाता है
संकट में साहस का सागर लहरा ले,
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
असफलता का काम है आना,
उसका तो है काम डराना,
जो डर गया वह मर गया,
इस मंत्र को अपने मन में बसा ले,
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
हार का मतलब माला भी होता है,
हार मोतियों को, फूलों को एक सूत्र में पिरोता है,
उपहार में भी ‘हार’ शब्द बसा है,
इस शब्द को ही अपना संबल बना ले,
हार को ही उपहार का पर्याय बना ले,
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
जो चाहने से मिले उसे चाहत कहते हैं,
जो मांगने से मिले उसे मन्नत कहते हैं,
जो जुनून से मिले उसे जन्नत कहते हैं,
मन-मंदिर के अंदर ही एक नई जन्नत बसा ले,
जश्न फिर एक नया और मना ले,
हार को ही उपहार बना ले,
हार को ही उपहार बना ले,
हार को ही उपहार बना ले.
-लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
जय विजय की वेबसाइट है-
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सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन के लिए कविताएं भेजने के लिए ई.मेल-
बरबादियों का सोग़ मनाना फ़िज़ूल था – २
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
मैं ज़िंदगी…
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया – २
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
मैं ज़िंदगी…
ग़म और खुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ – २
मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया