सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 3
छठी का दूध याद दिलाएंगे (कविता)
शान्ति-दीप की ज्वाला
एक बार फिर डबडबाई है
मेरे प्यारे भारत देश पर
कोई बुरी नजर छाई है
पड़ोसी के मन में
नीयत दुश्मनी की आई है
लालच से देखो कितना
डोल रहा है उसका मन
देख मेरे भारत की उन्नति
ईर्ष्या से जल रहा है तन
शांति-दूत भारत के सिंहों को
जगाना पड़ेगा महंगा रे दुश्मन
तनिक भी कम मत आंकना
मेरे देश के वीरों-रणबांकुरों को
देश की रक्षा का धर्म निभाते
सबक सिखायेंगे वे तुमको
नहीं पार करना कोई सीमा
अपनी हद नापना सिखा देंगे तुमको
शांति प्रिय भारत की सेना
दम-खम में है मजबूत
धरती पर, जल में और नभ में
फैले हैं हर ओर इसके दूत
बुरी नज़र न रखना वरना
उल्टी पड़ेगी तुझ पर ही तेरी द्यूत
अपनी ही हद में रह कर
संतोष कर सुखी रहोगे
लालच कर ‘गर युद्ध करोगे
तो मुश्किल में तुम पड़ोगे
जंग के मैदां में ‘गर आए
तो सामने यमदूतों से लड़ मरोगे
समय रहते चेतो तुम दुश्मन
गर तुमने किया कोई खिलवाड़
विश्व शान्ति को तुम अपनाओ
सह नहीं पाओगे हमारे वज्र प्रहार
सब देशों से प्यार तुम पाओ
बुद्ध की शिक्षा का करो फिर से प्रसार
चलते-चलते सुन लो तुम फिर
हम बार-बार नहीं चेतायेंगे
वैसे तो हम युद्ध छेड़ते नहीं
पर तुमने छेड़ा तो नहीं छोड़ेंगे
मजा तुम्हें चखाएंगे अच्छी तरह
छठी का दूध याद दिलाएंगे,
छठी का दूध याद दिलाएंगे,
छठी का दूध याद दिलाएंगे.
-सुदर्शन खन्ना
सुदर्शन भाई, सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन में आपने अपनी नायाब काव्य-रचना के साथ पहली बार दस्तक दी है, आपका हार्दिक स्वागत है. यह कविता ”छठी का दूध याद दिलाएंगे” देशभक्ति से ओतप्रोत तो है ही, भारतीय संस्कृति की अनुपम पहचान भी है. हमारी भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र है शांतिप्रियता. इस शांतिप्रियता में कायरता का कोई स्थान नहीं है. हम रक्षा करने में समर्थ होते हुए भी-
”वैसे तो हम युद्ध छेड़ते नहीं
पर तुमने छेड़ा तो नहीं छोड़ेंगे
मजा तुम्हें चखाएंगे अच्छी तरह
छठी का दूध याद दिलाएंगे,”
क्या चेतावनी है! क्या देशभक्ति का जज़्बा है! इस कविता का सबसे अहम शब्द है- ‘डबडबाई’. यों तो डबडबाई शब्द आंखों के लिए आता है, लेकिन आपने इसका प्रयोग ‘शान्ति-दीप की ज्वाला’ के लिए किया है, जो अपने आप में अनुपम बन पड़ा है. इस सदाबहार कविता के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं और ऐसी ही अन्य काव्य-रचनाओं के सृजन के लिए भी मंगल कामनाएं,