राजनीतिक मार्त्तण्ड
अटल सरकार ने जेपी को और मोदी सरकार ने नानाजी देशमुख को ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किये, दोनों को मरणोपरांत । अब डॉ. लोहिया को भारतरत्न से विभूषित किये जाने की बारी है। जहाँ जेपी ने सम्पूर्ण क्रांति का विगुल फूँक प्रियदर्शिनी इंदु गांधी की चूलें हिला कर रख दी, तो वहीं राममनोहर लोहिया भी इंदु से हिसाब मांगने लगे । बकौल लोहिया- ‘ज़िंदा कौमें पाँच बरस इंतज़ार नहीं करती ।’ हालांकि लोहिया के अंदर आर एस एस का आदर्शवाद रूप गृह था, किन्तु जब गांधीजी की हत्या पर जब आर एस एस को घसीटा गया था, तो जेपी ने डंके की चोट पर न केवल आर एस एस का बचाव किया था, अपितु चट्टान की भांति अडिग होकर कहा था– ‘अगर वो अपराधी है, तो मैं भी अपराधी हूँ ।’ उत्तरप्रदेश जन्मस्थली थी, किन्तु सम्पूर्ण भारत लोहिया की कर्मस्थली थी । वे पंडित नेहरू को पलटनेवाले नट कहा करते थे । डॉ. लोहिया भले ही विदेश में शिक्षित हुए थे, पर अंग्रेजी शिक्षा के विरूद्ध थे। विकिपीडिया के अनुसार, “3 जुलाई 1951 को समाजवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बुलाया गया। सम्मेलन में जर्मनी, युगोस्लाविया, अमेरिका, जापान, हांगकांग, थाईलैंड, सिंगापुर, मलाया, इंडोनेशिया तथा श्री लंका भी गए। लोहिया विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन से प्रिंसटन में मिले। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा, कि ‘किसी मनुष्य से मिलना कितना अच्छा होता है आदमी कितना अकेला पड़ जाता है।’ लोहिया ने अमरीका में सैकड़ों स्थानों पर भाषण किए।