गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जुल्फ़ बन कर  बदली  छाने लगी है।
तेरी   प्यारी   ख़ुशबू   आने  लगी  है।
यह  वादियां, फिजाएं, रंगीन  मौसम,
याद  फिर तेरी सनम  सताने लगी है।
वो  गिरते  झरने  की  मीठी  रुनझुन,
गीत  मल्हार सावन  सुनाने  लगी  है।
याद  आती   करवटें  बदल   हैं  लेते,
तेरी  ख़ामोश  अदा  सुलाने  लगी  है।
तन्हाई  में  मायूसी  जब   लगने  लगे,
बारात  यादों  की  जी  आने  लगी है।
रसीले  होंठ  रस  भरे  मधु  के प्याले,
देख  तितली मन की मंडराने लगी है।
कब  होगा  दीदार  इतना बता  जाओ,
घड़ी अब  सावन  की  जाने  लगी  है।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995