जुल्फ़ बन कर बदली छाने लगी है।
तेरी प्यारी ख़ुशबू आने लगी है।
यह वादियां, फिजाएं, रंगीन मौसम,
याद फिर तेरी सनम सताने लगी है।
वो गिरते झरने की मीठी रुनझुन,
गीत मल्हार सावन सुनाने लगी है।
याद आती करवटें बदल हैं लेते,
तेरी ख़ामोश अदा सुलाने लगी है।
तन्हाई में मायूसी जब लगने लगे,
बारात यादों की जी आने लगी है।
रसीले होंठ रस भरे मधु के प्याले,
देख तितली मन की मंडराने लगी है।
कब होगा दीदार इतना बता जाओ,
घड़ी अब सावन की जाने लगी है।
— शिव सन्याल