कविता

तृष्णा

आशा तृष्णा लोभ समान हैं

बांधे भीतर मन जात
दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है
पिस जाए यह गात
मृग तृष्णा सी बन ठगे चातुरी
अदृश्य मन का रोग
मर मिट गए इस के बस पड़े
देव दानव क्या लोग
काम क्रोध लोभ मोह सभी
इस के सुंदर रूप
बाहर से मन लुभावनें
भीतर से हैं कुरूप
छोड़े से भी ना छूटती
तृष्णा बड़ी बलवान
आज तक समझ पाया नहीं
गुणवती  मूढ़  इंसान
मन जिसने बस है कर लिया
नित नियम कर ध्यान
तृष्णा से मुक्ति उसे मिले
जिस मन बस जाएं भगवान
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995