माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
तेरी फूलों जैसी गोदी में, तेरी ठंडी मीठी लोरी में
श्रद्धा वाले फूल चढ़ाता हूँ, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
बचपन को तड़क सवेरे दिये, सुख ही सुख चार चुफेरे दिये
मैं तुझसे बलिहारे जाता हूँ, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
उंगली पकड़कर चलना सिखाया प्रथम जीवन का पाठ पढ़ाया
नित्य गुणगान तिरे में गाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
मेरे जीवन में तेरी खुशबू, मेरे मस्तिष्क में तेरी रूह
परछाई में तुझको पाता हूँ, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
बीच जवानी शुद्ध आचरण दिया, उच्च विद्या वाला दर्पण दिया
कर्मों वाले फूल उठाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
चूल्हा चैका रोटी मक्खन, चंगेर पतीला मूढ़ा ढक्कन
आज भी खुद को स्मरण कराता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
भाई बहनों में गेड़ी के दिन, खुशबू बाग चमेली के दिन
इन बैकुंठ में उतर जाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
बापू के खेतों बीच पसीना, अपनी शिक्षा का उत्तम नगीना
उत्तम वाले नगमे गाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
उमंगों से तूने विवाह रचाये, हम सबके तूने शकुन मनाये
तेरी कृपा में शर्माता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
पोते पोतियों से लाड़ लड़ाये, दोहते दोहतरियाँ गले लगाये
तेरी मूर्ति में मन्दिर पाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
बच्चा अगर रोये फिर हँसाये, सारी की सारी रात रिझाये
यादों से ही याद चुराता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
संयुक्त घर का था प्यार निराला, ज्यों अर्चन पूजा एक शिवाला
बरकत वाले गीत सुनाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
रोतों को भी खूब हँसा देती, बुझते हुए दीप जगा देगी
दुःख भीतर जब भी घबराता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
माँ की पूजा में रब्ब की पूजा, इस जैसा कोई और न दूजा
सारी दुनिया को समझाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
दुनियां तक मां की हस्ती रहती, यह नदिया तो युग युग है बहती
बालम को संदेश सुनाता हूं, माँ तुझको मैं शीश झुकाता हूँ
— बलविन्दर ‘बालम’