कण कण में कृष्ण क्रीड़ा किए
कण कण में कृष्ण क्रीड़ा किए, ह
कर्षण कराके घर्षण दे, कल्मष हर
हर राह विरह विरागों में, संग वे विचरते;
हर हार विहारों की व्यथा, वे ही
संस्कार हरेक करके वे क्षय, अक्
आलोक अपने घुमा फिरा, ऊर्द्ध्वि
कारण प्रभाव हाव भाव, वे ही तो
भावों अभावों देश काल, वे ही घु
थक जाते राह चलते, वे ही धीर बँ
मँझधार बीच तारक बन, ‘मधु’ को बचाते!
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’