राजनीति

भूमिपूजन के बाद ब्राह्मणवाद के नाम पर राजनीति सनातन धर्म व मंदिर के खिलाफ साजिश

अयोध्या में लंबी प्रतीक्षा के बाद भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भूमि पूजन किये जाने से देश के करोड़ों रामभक्तों में जैसा उत्साह, उल्लास, उमंग व आनंद का वातावरण अभी भी व्याप्त है तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में भूमिपूजन व दर्शन किये जाने के बाद जिस प्रकार से भक्तों का समूह अयोध्या में दर्शन के लिए उमड रहा है, तभी से प्रदेश में जातिवाद व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों में अजीब सी छटपटाहट दिख रही है तथा इन दलोें ने हिंदू जनमानस को विभाजित करने व तुष्टिकरण करने का एक नया खेल बहुत तीव्रता से प्रारम्भ कर दिया है।
समाजवादी दल, बहुजन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने एक बार फिर मूर्तियों की राजनीति का खेल शुरू कर दिया है। प्रदेश मेें सुप्रीम कोर्ट के फैसले व फिर उसके बाद प्रधानमंत्री की ओर से बहुत ही शांतिपूर्वक वातावरण मेें जिस प्रकार से भूमि पूजन किया गया वह इन दलोें को कतई रास नहीं आ रहा है। जिस प्रकार से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ वातावरण तैयार किया गया और देशभर मेें हिंसा की आग भड़कायी गयी उसी प्रकार की साजिशें फिर शुरू हो गयी हैं। अयोध्या में भव्य भूमि पूजन के बाद आम जनमानस का उत्साह देखकर इन दलों के नेताओं के पैरों तले जमीन खिसक चुकी है। यही कारण है कि अब इन दलों ने आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपने चुनावी घोषणापत्रों को तैयार करना शुरू कर दिया है।
अयोध्या मेें भव्य मंदिर निर्माण करोड़ों हिंदुओं की आस्था का विषय है, जिसे हिंदू जनमानस अब पूरा होता हुआ देख रहा है, वह भी अपने सर्र्वािधक प्रिय नेता नरेंद्र मोदी के हाथों। सबसे पहले कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे के मारे जाने के बाद इन दलों ने एक अपराधी के नाम पर ब्राह्मणों के उत्पीड़न का अभियान चलाया, लेकिन दुर्भाग्य से विकास दुबे जैसे अपराधियों को इन दलों का ही संरक्षण मिल रहा था, यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन अब उसके बाद बहुत ही घटिया और निम्न स्तर की राजनीति शुरू हो गयी है, वह भी महापुरूषों, संतों, दलितों व पिछडों के नाम पर। एक प्रकार से प्रदेश में जातिवाद के आधार पर युद्ध छेड़ने की तैयारी इन दलों की ओर से की गयी है।
अयोध्या में भव्य राममंदिर निर्माण का सपना व संकल्प मोदी जी के हाथों पूरा हो सकेगा, यह इन दलों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। अब इन दलों के हाथों से अयोध्या विवाद की आढ़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का आधार भी चरमरा गया है। आज जो बसपा यह कह रही है कि अगर भूमि पूजन समारोह में राष्ट्रपति को ले जाया जाता, तो अच्छा रहता ंया फिर किसी दलित संत से भूुमि पूजन कराया जाता, तो कुछ अच्छा संकेत हो सकता था कहकर अपनी विकृत सोच का परिचय दे दिया। वहीं अब वह ब्राह्मणों के लिए अपना प्रेम दर्शा रही हैै और जब समाजवादी पार्टी की ओर से लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फीट ऊंची और हर जिले में परशुराम व मंगल पांडेय की प्रतिमा लगाने व गरीब ब्राह्मणों की बेटियों की निःशुल्क विवाह कराने जैसे ऐलान किये गये, तो उनका बिदकना स्वाभाविक ही था। सपा की ओर से भगवान परशुराम जयंती का अवकाश फिर शुरू करने का ऐलान किया गया। अब सपा की इस मांग को आधार मानकर ब्राह्मण मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ब्राह्मण नेता कहे जाने वाले जितिन प्रसाद के हाथों पत्र लिखवाकर परशुराम जयंती पर अवकाश बहाल करने की मांग की है।
अब प्रदेश में ब्राह्मणवाद की घिनौनी राजनीति का दौर शुरू हो गया। बसपा नेत्री मायावती ने ऐलान कर दिया कि सत्ता में आने पर वह भगवान परशुराम की सबसे अधिक ऊंची प्रतिमा लगवायेंगी तथा अन्य सभी जातियों व धर्मो में जन्मे संतों, गुरुओें व महापुरुषों के नाम पर बड़ी संख्या में आधुनिक अस्पताल सभी जरूरी सुविधायुक्त कम्युनिटी सेंटर का निर्माण करायेंगी। उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव पर जातिवाद की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए अपने आपको सबसे बड़ा ब्राह्मण हितैषी घोषित करने में जुट गयी हैं। बसपा ब्राह्मणों को साधने के लिए वर्चुअल संवाद करने जा रही है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अपनी सरकार के कार्यकाल में ब्राह्मणों के हित में किये गये कामों को याद दिला रहे हैं ओैर बसपा नेत्री मायावती को लखनऊ से नोएडा तक लगी मूर्तियों के विषय में जानकारी दे रहे हैं। वहीं भगवान परशुराम के नाम पर भाजपा को नसीहत भी दे रहे हैं।
हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान परशुराम का स्थान बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है। कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने कई बार क्षत्रियों को हराने के लिए संघर्ष किया था। भगवान परशुराम अपने ज्ञान व क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं। पता नहीें क्यों सपा और बसपा जैसे दलों के लिए भगवान परशुराम इतने प्रिय हो गये हैं, जबकि वास्तविकता यह हेै कि भगवान परशुराम ब्राह्मण समाज के लिए आदरणीय हो सकते हैं, लेकिन इतने महान भी नहीं कि उनके लिए मूर्तियों के नाम पर ब्राह्मण समाज को बहकाया जाये।
भगवान परशुराम के नाम पर अचानक चल निकली राजनीति पर अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि ने नाराजगी जतायी है और कहा कि देवी-देवताओें, ऋषि-मुनियों और अवतारी महापुरुषोें की जातियों में बांटने को अनुचित करार दिया है। यह सनातन धर्म और हिंदू समाज को कमजोर करने की साजिश है। संत इसे सबके के सामन लायेंगे। भगवान राम और परशुराम विष्णु के अवतार थे। वे सबके आराध्य हैं। पांच सौ वर्षों के बाद सनातन धर्म में आस्था रखने वालों की सबसे बडी जीत श्रीरामजन्मभूमि में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होन से हुई है। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है। आज विश्वभर के सनातन धर्मावलंबी गौरवान्वित हें।
निश्चय ही इस समय ब्राह्मणों का हित साधन करने वाले देश व समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं। असली बात यह है कि यह सभी दल हिंदू समाज की ताकत को पूरी तरह से बिखेर देना चाहते हैं, ताकि फिर से सत्ता पर कब्जा किया जा सके। ये लोग भगवान परशुराम की आड़ में ब्राह्मणों व क्षत्रियों के बीच वैमनस्यता की खाई को और अधिक गहरा करना चाहते हैं। यह वही समाजवादी पार्टी है, जिसके नेतृत्व में अयोध्या में हिंदू कारसेवकों पर गोलियां चलायी जाती थीं, सावन के महीने में कावड़ियों पर मुस्लिम समाज के गुंडे हमला करते थे। ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिरों व घरों में हिंदू जनमानस को पूजा-पाठ करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता था। इन दलोें ने अयोध्या में मुसलमानों से बाबरी मस्जिद बनवाने का वादा कर रखा था। बसपा नेत्री मायावती ने तो 2017 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर बाबरी मस्जिद बनवाने की बात कही थी और इसके लिए बीस पेज की एक पुस्तिका भी वितरित करवायी थी। इन दलों के शासनकाल में ब्राह्मण समाज ही नहीं अपितु समस्त हिंदू जनमानस का घोर अपमान कई-कई्र बार हो चुका है।
इन दलों की विकृत मानसिकता का ही परिणाम है कि हिंदू जनमानस को लंबे इंतजार के बाद मंदिर का सपना पूरा होते दिख रहा है। पता नहीं कांग्रेस पार्टी किस आधार पर ब्रहम चेतना अभियान चला रही है जबकि वास्तविकता यह है कि कांग्रेस में ही ब्रह्म चेतना का जबर्दस्त अभाव हो चला हेै। सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद मेें फैसला न सुना पाये, इसके लिए तमाम कोशिशें कांग्रेस के वकीलों की ओर से ही की गयीं। अब ये सभी दल छटपटा रहे हैं। मुसलमानों के बीच जाने का इन दलों के पास कोई नैतिक आधार नहीं रह गया है। अब ये दल पूरी ताकत से हिंदू जनमानस मेें ही विभेद पैदा करने की साजिशें रचेंगे। अतः हिंदू जनमानस के लिए अब लगातार जागते रहने का समय है। भारतीय जनता पार्टी व संघ को भी जमीनी धरातल पर बहुत सतर्क रहना होगा, नहीं तो ये लोग आग लगाकर अपनी रोटी सेंकने का प्रयास करेंगे।
असल बात यह भी है कि प्रदेश के विगत तीन चुनावों में सवर्ण मतदाता का पूरा का पूरा वोट भाजपा को मिला है, जबकि प्रदेश में केवल 10 से 12 प्रतिशत वोटर ही ब्राह्मण हैं। अतः परशुराम जी के नाम पर यह हिंदू जनमानस की आस्था को तहस नहस करने व मंदिर निर्माण के प्रति गहरी और गंभीर साजिश है। सनातन धर्मावलंबियों कोेे ऐसी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर महाअभियान छेड़ना पड़ेगा।

— मृत्युंजय दीक्षित