ग़ज़ल
मरहूम शायर जनाब *लानत इंदौरी साहब* ने नरक से यह ताज़ा ग़ज़ल भेजी है-
यह तो दोज़ख़ है, जन्नत इसका नाम थोड़ी है
यमदूतों का राज है, अब्बा का निज़ाम थोड़ी है
शैतान ही शैतान मिलते हैं यहाँ चारों तरफ
यह कोई ख़ुदा या फ़रिश्तों का मुक़ाम थोड़ी है
घूमते हैं यहाँ हर तरफ़ लिजलिजे सूअर
यहाँ बहत्तर हूरों के शबाब का जाम थोड़ी है
भरे पड़े हैं यहाँ तमाम ग़द्दार मेरे ही जैसे
यहाँ किसी मुल्क का शरीफ़ अवाम थोड़ी है
मुल्क से ग़द्दारी पे सौ-सौ बार मुझको “लानत”
उसी की सजा है, ख़िदमत का इनाम थोड़ी है