डाकघरों में चिट्ठियाँ अब….
जिसतरह से विविध भाँति के मोबाइल फोन होने से डाकघरों में चिट्ठियों के आगमन में अस्सी फीसदी की कमी आ गयी है और लोग अपने परिचितों व परिजनों को पत्र लिखने भूल-से गए हैं, उसी भाँति लोग मुद्रित अखबारों और पुस्तकों के बारे में भी कयास लगाए बैठे थे कि इनका मुद्रण भी दम तोड़ देगा, लेकिन भारत में 17-18 वर्षों से इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया पूर्णरूपेण हावी है, तथापि इ-बुक या इ-मैगज़ीन की अपेक्षा मुद्रित पुस्तकों और समाचार-पत्रों का रूतबा अब भी कायम है । फख्त कायम ही नहीं, इनका क्रेज़ कई प्रतिशत बढ़ भी गया है। तभी तो पुस्तक मेले में ‘भीड़’ पुस्तक-क्रेता के साथ-साथ वैसे पुस्तक प्रेमियों को लेकर भी है, जो महँगे किताब खरीद तो नहीं पाते, किन्तु ऐसे मेले में अंश-अंश पढ़ जरूर लेते हैं । विदेशों में भी मुद्रित पुस्तकों की महत्ता है, अगर ऐसा वहाँ नहीं होता, तो ‘हैरी पॉटर’ या ‘ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ जैसे मुद्रित पुस्तकों की बिक्री ऐसे में तब करोड़ों में थोड़े ही हो पाती !