जन्म भूमि के प्रांगण में
सदियां बीत गई तब समय ने ये दिन दिखलाया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
यूं तो गया नहीं तू कहीं भी कण कण में है व्याप्त
फिर भी पाया जनमानस ने कितना है संताप
दूर हुए दुख अब प्रसन्नता का सूरज गहराया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
क्यूं हर युग में कष्ट झेलता वो करता वनवास
वनचर जलचर सकल जीव की पूरी करता आस
पग पग चलता चहूं दिशा में प्रेम का रस बरसाया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
मंगलदीप सजाओ चहुंदिसि दीपक हों प्रज्वलित
भाव भरे मन नैन बावरे दर्शन को उत्कंठित
आ पहुंचा संदेश पधारे प्रभु सुन मन हर्षाया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
आज अयोध्या हुलस रही है सजी हुयी दुल्हन सी
मन मयूर सा नाच रहा है छलके खुशी अंसुअन सी
गूंजे मंत्रोच्चार घंट ध्वनी द्वारे शंख बजाया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”