गीत/नवगीत

जन्म भूमि के प्रांगण में

सदियां  बीत गई तब समय ने ये दिन दिखलाया
जन्म भूमि के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
यूं तो गया नहीं तू कहीं भी कण कण में है व्याप्त
फिर  भी  पाया  जनमानस  ने  कितना है संताप
दूर  हुए  दुख  अब  प्रसन्नता  का सूरज  गहराया
जन्म भूमि  के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
क्यूं  हर  युग  में  कष्ट  झेलता  वो करता वनवास
वनचर  जलचर  सकल जीव की पूरी करता आस
पग  पग चलता चहूं दिशा में प्रेम का रस बरसाया
जन्म भूमि  के प्रांगण में  फिर राम लौट के आया
मंगलदीप  सजाओ चहुंदिसि दीपक हों प्रज्वलित
भाव  भरे  मन  नैन  बावरे  दर्शन  को  उत्कंठित
आ  पहुंचा  संदेश  पधारे  प्रभु  सुन  मन  हर्षाया
जन्म भूमि  के  प्रांगण में फिर राम लौट के आया
आज अयोध्या हुलस रही है सजी हुयी दुल्हन सी
मन मयूर सा नाच रहा है छलके खुशी अंसुअन सी
गूंजे   मंत्रोच्चार   घंट  ध्वनी   द्वारे  शंख  बजाया
जन्म भूमि  के प्रांगण में फिर राम लौट के आया
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है