गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तू है आसमा और मैं हूं ज़मीं
तेरा मेरा मिलन होना मुश्किल है।

मैं सागर किनारे पड़ी रेत हूं
मेरी किस्मत में ना कोई साहिल है।

क्यों इल्जाम दें जहां में किसीको
मेरा दिल ही मेरे दिल का कातिल है।

वह ना सही उनके गम तो मिले हैं
उनकी यादों का हक हमको हासिल है।

तेरे दर पे हम फूल लाए थे लेकिन
सुना यह अमीरों की महफिल है।

बहुत दर्द जानिब वाह हाथ छूटा
के जुदा आज से अपनी मंजिल है।

— पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर