असफलताओं का रिकॉर्ड
एक राज्य PSC की मुख्य परीक्षा का रिजल्ट भी आ गई और उनमें स्वयं को नहीं पाया, तो मन खिन्न हो उठा– पहला; स्वयं के ज्ञान-कौशल पर और दूसरा; उक्त लोक सेवा आयोग की मूल्यांकन-पद्धति पर ! वहीं जब मैं कुछ अन्य विधा के written और साक्षात्कार के लिए प्रयास करता हूँ, तो ‘टॉप’ करता हूँ । अगर आयोग पर संशय करता हूँ, तो लोग कहेंगे- ‘अंगूर खट्टे हैं’ ….. और अन्य प्रतिभागी निकल जाते हैं, तुम क्यों नहीं ? ….. यानी मेरी ज्ञान-कौशल ही गड़बड़ है, यही न ! परंतु ऐसा नहीं है, जो सफल अभ्यर्थी हैं और जो मेरे विषय से हैं, उनसे मेरी टकराहट करा दी जाय, तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा । निम्नमध्यवर्गीय परिवार से भी कई अधिकारी बने हैं, किन्तु यह सब मेरे साथ ही क्यों ? क्या मैं पदाधिकारी के लायक नहीं! मैं 22 साल इसी आयोग के ऐसी ही 25 परीक्षाओं के लिए समर्पित रहा, इसे क्या कहेंगे ? मेरी उत्तरपुस्तिकाएँ RTI से निकाल कर देखी जा सकती है…. 45वीं के लिए जो स्थिति जनित की गई थी व हिंदी व्याख्याता के लिए भी दुःस्थिति जनित की जा रही है, उससे तो मुझे हर असफलता पर आयोग के प्रति ही शक होते चला गया ! हाँ, इसमें दो राय नहीं कि साक्षात्कार पक्षपातपूर्ण होते हैं, चाहे हर परीक्षार्थियों के लिए अलग से कोडिंग ही क्यों न हो ?