फ्लर्टिंग से आगे
अमित के दिल में ऐसी ही हलचल मच चुके थे। इधर प्रीतम अमित के फ्लर्टिंग को समझ गयी थी और उसे भी अमित भाने लगी थी। प्रत्यक्षत: रोज ने पुन: उत्तरित हुई- अब सेमिनार खत्म होने वाली है, चलिए कुछ सुन लेते हैं !
अमित को अचानक यह ख्याल आया कि वे दोनों वाशरूम और सेमिनार स्थल के बीच में खड़े-खड़े ही वार्त्ता में मग्न हैं, इसलिए तो वह प्रीतम की बातों का रिप्लाई देते हुए ‘हूँ’ कहा यानी हुँकारी भरा। अमित सेमिनार स्थल में यह सोचते-सोचते प्रवेश कर जाते हैं कि महिलायें भी अजीब प्राणी होती हैं, उन्हें जब देवता नहीं समझ पाए हैं, तो मानव क्या चीज है ? वे दोनों जैसे ही साथ-साथ सेमिनार स्थल आते हैं, प्रीतम की कुछ सहपाठिनी मित्रो के दिमाग में यह बात आई कि इन दोनों में कुछ न कुछ चल रहा है और ऐसे विचार भीड़ में बैठे अमित के सहपाठी मित्रो के दिमाग में आये।
दोस्त भी अजीब प्राणी होते हैं, क्योंकि अगर कोई युवती सड़क पर किसी युवक के आगे-आगे चल रही हो या पैरेलल चल रही हो, भले ही पहचान के हो या नहीं हो और इस दृश्य को देख प्राय: लोग या दोस्त यह मान बैठते हैं कि दोनों में कोई न कोई चक्कर जरूर है !
सेमिनार खत्म हो चुकी थी, इस सेमिनार से स्टूडेंट्स मोटिवेट हुए या नहीं ! उन्हें क्या फायदा हुआ, बहरहाल मालूम नहीं ? ….लेकिन दो दिलों के चैन को सेमिनार ने जरूर ही बेचैन कर दिया ! सेमिनार शनिवार को हुई, रविवार को कॉलेज बंद…. ऐसे में प्रीतम और अमित की नींद जैसे उड़ गई थी। दोनों के दोनों अब बस एक-दूसरे को देखना चाह रहे थे, बात करना चाह रहे थे ! अब रविवार के बाद सोमवार को ही मिल पाएंगे ! शायद प्यार इसी बेचैनी को कहते हैं।