हास्य व्यंग्य

अच्छे दिन कब आएंगे

आजकल भाई लोग अच्छे दिनों की आशा में मरे जा रहे हैं, बेचैन हैं, तड़प रहे हैं, अपनी नींद ख़राब कर रहे हैं लेकिन अच्छे दिन मृगमरीचिका बन गए हैं, आ ही नहीं रहे हैं I अच्छे दिन के लिए लोग खूब पसीना बहा रहे हैं, कठिन संघर्ष कर रहे हैं, कठोर साधना कर रहे हैं I सरकारी कर्मचारी हर फ़ाइल को रोक रहे हैं, अफसर फाइलों को ऊपर- नीचे सरकाने में अपनी उर्जा का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं, ठेकेदार सड़क बनाने के लिए सीमेंट की जगह बालू मिला रहे हैं, व्यापारी कालाबाजारी करने के लिए नए – नए तरीके का अविष्कार कर रहे हैं, घूसखोर बाबुओं ने घूस की दर बढ़ा दी है, प्राध्यापक स्कूल – कॉलेज की जगह कोचिंग संस्थानों में अधिक पसीना बहा रहे हैं, डॉक्टर दवा कंपनियों से ज्यादा कमीशन लेने के लिए अधिकतम मोलतोल कर रहे हैं, प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर अपने मालिकों के आदेश से अधिक से अधिक मरीजों का ऑपरेशन कर रहे हैं, फिर भी अच्छे दिन नहीं आ रहे हैं I अब क्या किया जाए भाई !! इतनी मेहनत – मशक्कत करने के बाद भी जब अच्छे दिन नहीं आ रहे हैं तो क्या किया जाए !! जो 70 वर्षों में अच्छे दिन नहीं ला सके वे भी पूछने लगे हैं कि अच्छे दिन कब आएँगे I मेरा भूतपूर्व और अभूतपूर्व घूसखोर मित्र घोंचूमल भी आजकल अच्छे दिनों की चिंता में दुबला होता जा रहा है I समस्त लम्पटीय गुणों और लोकतंत्रीय कचरा से युक्त भूतपूर्व मगध सम्राट चालू प्रसाद भी आजकल अच्छे दिनों की चिंता में घुले जा रहे हैं जिनके अच्छे दिन का आरम्भ अपने परिवार से और अंत अपनी जाति के उद्धार से होता है I चालू प्रसाद जेल में रहकर भी अच्छे दिन लाने के लिए आकुल – व्याकुल हैं I उन्होंने मगध के राज सिंहासन पर बैठकर पंद्रह वर्षों तक अपहरण, लूट और चोरी की संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी है I अतः उनका चिंतित होना तो स्वाभाविक ही है I
मेरे मोहल्ले में एक चोर रहता है I उसका नाम खेसारीलाल है I खेसारीलाल घोषित रूप से चोर है, लेकिन आज तक वह पकड़ा नहीं गया I एक- दो बार पकड़ा भी गया तो उसने पुलिसवालों को कागजस्वरूपा लक्ष्मी जी के साक्षात दर्शन करा दिए I लक्ष्मी जी की कृपा से वह कभी जेल नहीं गया I सभी जानते हैं कि खेसारीलाल चोर है लकिन उसके खिलाफ कहीं कोई सबूत नहीं, किसी थाने में कोई रिपोर्ट नहीं I इसलिए वह सफेदपोशों के मुहल्ले में शान से रहता है I अब सफेदपोश भी कितने सफ़ेद और कितने श्याम हैं, यह चिंता और चिंतन का विषय है I जिस प्रकार प्रत्येक कमीज में एक चोरपॉकेट होता है उसी प्रकार प्रत्येक सफेदपोश की दाढ़ी में एक स्याह तिनका होता है I जब से सरकार ने पुलिस तंत्र को मजबूत किया है, खेसारीलाल का धंधा मंदा हो गया है I खेसारीलाल अब इस इंतजार में है कि कब पुलिस तंत्र सुस्त हो और उसके अच्छे दिन आएं I अच्छे दिन क्या पेड़ पर उगते हैं कि डाल झुकाया और तोड़ लिया I अब तो सभी ऐरे- गैरे नत्थू – खैरे, राजा भोज और गंगू तेली पूछने लगे हैं कि अच्छे दिन कब आएँगे I मिलावटखोरों के अच्छे दिन तब आएँगे जब उन्हें मिलावट करने की खुली छूट मिलेगी, रिश्वतखोरों के अच्छे दिन तब आएँगे जब उन्हें रिश्वत लेने की वैधानिक स्वीकृति मिल जाएगी, नेताओं के अच्छे दिन तब आएँगे जब उन्हें वोट मांगने के लिए दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा I ईमानदार भी अच्छे दिन के लिए तड़प रहे हैं और बेईमान भी I ईमानदार के अच्छे दिन तब आएँगे जब उनके ईमान को महत्व मिलेने लगेगा I अभी तो ईमान सिसक रहा है, ईमान बिक रहा है, ईमान ख़रीदा जा रहा है, ईमान की निलामी की जा रही है I जब ईमान को जलील नहीं होना पड़ेगा, ईमान को इज्जत से जीवित रहने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा, ईमान को चौराहे पर फांसी नहीं दी जाएगी तब ईमानदारों के अच्छे दिन आएँगे I
लल्लन हलवाई को भी अच्छे दिनों का इंतजार है और बबन ठेकेदार को भी I मनोज बाबू को भी अच्छे दिनों का इंतजार है और इनकम टैक्स के चपरासी ददन शर्मा को भी I इतिहास गवाह है कि लल्लन हलवाई ने आजतक बिना मिलावट के कोई सामान नहीं बेंचा I घी में डालडा, पनीर में आटा और डालडा में मिटटी की मिलावट कर उसने न जाने कितनों के प्राण हर लिए I इसलिए कुछ लोगों ने उसका उपनाम प्राणहरण मिठाईवाला रख दिया है I वह भी आजकल अच्छे दिनों की प्रतीक्षा में दुर्बल होता जा रहा है I बबन ठेकेदार के बनाए पुल और भवन उद्घाटन के पहले ही धराशायी हो जाते हैं I न जाने बबन के धराशायी भवनों में दबकर कितने मजदूरों को मोक्ष मिल गया I उसे भी अच्छे दिन का इंतजार है I मनोज बाबू एक सरकारी विभाग में क्लर्क है I जिस प्रकार बुद्धिजीवी, श्रमजीवी, मसिजीवी आदि शब्द होते हैं उसी प्रकार उसने अपने लिए एक नया शब्द गढ लिया है रिश्वतजीवी I अन्य रिश्वतखोरों की तरह उसमें कोई पाखंड नहीं है I वह खुलेआम रिश्वत भी लेता है और रिश्वतखोरी के समर्थन में व्याख्यान भी देता है I देखें, इन महापुरुषों के अच्छे दिन कब तक आते हैं I
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से,
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से I
-साहिर लुधियानवी
हजार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ायब
ये किस खराबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया I
-शहजाद अहमद

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]