हास्य व्यंग्य

भ्रष्टाचार अमर रहे

आजकल सभी लोग भ्रष्टाचार का उन्मूलन करने के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं I देश की एक सौ तीस करोड़ जनता भ्रष्टाचार का समूल नाश करना चाहती है, लेकिन इसका नाश ही नहीं हो पा रहा है I जिसे देखो वह भ्रष्टाचार के पीछे पड़ा है, उसे मिटाने पर आमादा है I कहता है कि हम इसे मिटाकर दम लेंगे I अब तो मुझे भ्रष्टाचार से सहानुभूति होने लगी है I भ्रष्टाचार ने भला किसी का क्या बिगाड़ा है कि इस बेचारे के पीछे लोग हाथ धोकर पड़ गए हैं I जिस प्रकार भगवान की कोई एक परिभाषा नहीं दी जा सकती उसी प्रकार भ्रष्टाचार की भी कोई निश्चित परिभाषा नहीं है I किसी एक के लिए भ्रष्टाचार समझा जानेवाला कार्य किसी अन्य के लिए शिष्टाचार भी हो सकता है I खेसारी यादव दूध और पानी के मिलन को भ्रष्टाचार नहीं मानते हैं I लल्लन हलवाई पनीर में आटा मिश्रित कर ग्राहकों को चूना लगाता है, लेकिन इस अपमिश्रण को वह भ्रष्टाचार नहीं मानता I ददन ठेकेदार विभागीय इंजिनियरों को दस प्रतिशत कमीशन देता है और खुद अस्सी प्रतिशत धन हजम कर जाता है, लेकिन अपनी नजर में वह पवित्र आत्मा एवं विभागीय इंजिनियर भ्रष्ट हैं I मीडिया जगत में अमरदीप नामक एक चरणचाटू पत्रकार हैं I वे बहुत बड़े और पुराने पत्रकार हैं I वे इतने बड़े हैं जितना कोई ताड़ का पेड़ भी नहीं हो सकता I वे जिन राजनेताओं – राजनेत्रियों का इन्टरव्यू लेते हैं उनसे कोई असहज सवाल नहीं पूछते हैं, वे पेटीकोट के रंग, कॉफी बनाने की विधि और ‘लव आजकल’ विषयक सवाल पूछते हैं I इसलिए भाई लोग उन्हें पेटीकोट पत्रकार कहते हैं I इतिहास साक्षी है कि लक्ष्मी माता का आशीर्वाद लिए बिना वे न तो ख़बरें दिखाते हैं, न ख़बरें छिपाते हैं I वे स्पष्टवादी पत्रकार हैं I उनका कहना है कि वे पत्रकारिता के क्षेत्र में भजन करने नहीं, बल्कि धन अर्जन करने के लिए आए हैं I अपनी कला – कौशल और करामाती विद्या के बल पर उन्हेंने पद्मश्री पुरस्कार भी झटक लिया है I अमरदीप भी आजकल भ्रष्टाचार को उन्मूलित करने के लिए विह्वल – व्याकुल हैं I आजकल वे टीआरपी का झूला झूलते खबर बुभुक्षु न्यूज़ चैनलों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं I भ्रष्टाचार एक प्राचीन अवधारणा है जिसका भारत के साथ अटूट रिश्ता है I जवानी के दिनों में जब मैं सरकारी लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करता था तो मेरे पड़ोसी चतुरी चाचा कहा करते थे कि समय आने पर तुम्हारा आक्रोश भी व्यवस्था के हवन कुंड में स्वाहा हो जाएगा I अरे भाई ! भ्रष्टाचार तो एक पौराणिक विधा है, यह हर युग, हर काल में रहा है I भ्रष्टाचार ईमानदारी का बड़ा भाई और बेईमानी का छोटा साला है I भ्रष्टाचार को मिटाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि प्रत्येक भारतवासी का परम कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचार की श्रीवृद्धि करने के लिए भरपूर प्रयास करे I भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है I अर्थव्यवस्था में सुधार होने पर लोगों कों रोजगार मिलता है I किसी कार्य के लिए अगर कोई अधिकारी कुछ चढ़ावा, कुछ पत्र – पुष्प की माँग करता है तो उसके खिलाफ वामपंथी आलोचक बनने की क्या जरूरत है ? पत्र – पुष्प अर्पित करना तो भारत की गौरवमयी परंपरा रही है I हम भगवान को पत्र – पुष्प अर्पित कर अपनी सफलता का आशीर्वाद तो मांगते ही हैं न I इसी तरह बड़े अधिकारियों या छोटे क्लर्कों को कुछ पत्र – पुष्प अर्पित कर अपने कार्य की सिद्धि करा लेना कौन – सा अपराध हो गया !! कुछ ले – देकर काम करना – कराना तो देशसेवा है I रिश्वत लेनेवाले भी अपने देश के, देनेवाला भी अपने देश के I देश का धन देश में ही रह गया, विदेश में तो नहीं गया I इसी तरह तो बनेगा आत्मनिर्भर भारत I रिश्वत, कमीशन आदि से देश की आर्थिक प्रगति होती है और भ्रष्टाचार से स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिलता है I लेनेवाला और देनेवाला दोनों स्वदेशी I रिश्वतखोर अधिकारी प्राप्त धन से कुछ सामान खरीदता है जिससे देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता है, देश की आर्थिकी सुदृढ़ होती है और आम जनता के जीवन स्तर में सुधार होता है I जो लोग रिश्वतखोरी का विरोध करते हैं वे देश की आर्थिक उन्नति में बाधा डालते हैं I अतः वे देशद्रोही हैं I सभी लोग बेईमानी का आबे हयात पीना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं I यह कहां का न्याय है ? गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज I यदि भ्रष्टाचार शब्द पसंद नहीं हो तो कोई दूसरा नाम दे दो I नाम में क्या रखा है I जिस प्रकार रिश्वत को चाँदी का जूता नाम दे दिया गया है उसी प्रकार भ्रष्टाचार को शिष्टाचार या सदाचार नाम दे दो, लेकिन इसकी जड़ में मट्ठा तो मत डालो I भ्रष्टाचार को न कोई रोक पाया है, न कोई रोक पाएगा I जब भ्रष्टाचार का उन्मूलन ही नहीं किया जा सकता तो इसे उन्मूलित करने का विचार ही फासीवादी है I भ्रष्टाचार का सतोगुण तो भारतवासियों के रक्त में घुस चुका है, उनके डीएनए में शामिल हो चुका है I इसलिए आप चाहें या न चाहें, भ्रष्टाचार का सतोगुण तो रहेगा I यह भगवान की तरह सर्वव्यापी और अविनाशी है I जो अमर है उसे मिटाने का प्रयास करना भी महापाप है I जिस तरह वामपंथी परजीवियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना बेकार है उसी तरह भ्रष्टाचार का उन्मूलन करने का प्रयास करना भी महापाप है I भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे राजनीति देवी ने अमरत्व का वरदान दिया है I ‘लिव विद कोरोना’ के साथ – साथ ‘लिव विद करप्शन’ को भी जीवन का मूल मंत्र बनाना चाहिए I बिहार किसी अन्य क्षेत्र में तरक्की करे या न करे, लेकिन वह भ्रष्टाचार के क्षेत्र में नित नए – नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है I मैं भी एक बिहारी हूँ I इसलिए जब सुनता हूँ कि बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए कागज की हजारों नावें चल रही हैं, पुल और भवन उद्घाटन के पहले ध्वस्त हो रहे हैं, दारोगा की बहाली में दस लाख की घूस ली जा रही है तो मेरा सीना छप्पन इंच का हो जाता है I मेरे लिए तो यह अत्यंत गौरव की बात है कि बिहार भ्रष्टाचार की सड़कों पर सरपट दौड़ रहा है I अभी हाल की दो गौरवपूर्ण घटनाओं के कारण बिहार ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है I बिहार में गंडक नदी पर बने दो पुल उद्घाटन के पहले ही ध्वस्त हो गए I जिस दिन मुख्यमंत्री को उद्घाटन करना था उस दिन प्रातःकाल में ही पुल भरभराकर गिर पड़ा I कम से कम ठेकेदारों और अभियंताओं ने इतना ध्यान तो रखा कि मुख्यमंत्री के आने के पहले वह गिर गया अन्यथा गंभीर दुर्घटना हो सकती थी I अतः इन ठेकेदारों और अभियंताओं का सार्वजानिक अभिनंदन किया जाना चाहिए जिनकी सूझबूझ के कारण पुल उद्घाटन के पहले ही भूमिसात हो गया I भ्रष्टाचार के सीमेंट, परसेंटेज की ईंट और कमीशन के सरिया पर बने ये पुल सुशासनकालीन स्थापत्य कला के अनुपम उदाहरण हैं I बिहार में ऐसे महापुरुषों की भी कमी नहीं है जो उस स्थान पर भी कागजी पुल बना देते हैं जहाँ नदी नहीं है I ऐसे कल्पनाशील अधिकारी प्रणम्य हैं I कोरोनाकाल में आपदा को अवसर में बदलने का जुमला खूब उछाला जा रहा है, लेकिन इतिहास साक्षी है कि बिहार में बाढ़ जैसी आपदा को अवसर में बदलने की प्राचीन गौरवशाली परंपरा रही है I पंचायत के अधिकारियों ने कागजी नाव चलाकर लक्ष्मी माता का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त किया है तथा अपने और अपनों की गरीबी दूर की है I
वैसे भ्रष्टाचार के मामले में भारत का कोई भी प्रदेश और कोई भी विभाग कमतर नहीं है I को बर छोट कहत अपराधू I भ्रष्टाचार के मामले में अक्खा इंडिया एक है I यही देश की विविधता में एकता का प्रमाण है I पौराणिक ग्रंथों के आधार पर देश की सांस्कृतिक एकता सिद्ध की जाती है, लेकिन देश की भ्रष्टाचारीय एकता की झलक प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रदेश का कोई भी अखबार उठा लीजिए, आपको भ्रष्टाचार और घोटाले के एक से बढकर एक किस्से – कारनामे मिल जाएँगे I हमारे देश में भ्रष्टाचार के तरीकों में बहुत साम्य है I भ्रष्टाचार के मोर्चे पर क्या उत्तर, क्या दक्षिण, क्या पूरब, क्या पश्चिम – हम सब एक हैं I भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय एकता कि भावना को मजबूत करता है, वह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है I हिंदी और हिंदीतर प्रदेशों में कोई भेदभाव नहीं है I हमारे देश की उदारता है कि हिंदी प्रदेशों ने भ्रष्टाचार के जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है उसे हिंदीतर प्रदेशों ने गले लगाया है और हिंदीतर प्रदेशों की रिश्वतखोरी परंपरा को हिंदी प्रदेशों ने बिना किसी अनुवादक का सहारा लिए अपना कंठहार बनाया है I मगध सम्राट चालू प्रसाद और लुंगी ब्रांड ताम्बरम की चौर्य कला में अद्भुत साम्य है I इसी प्रकार कुमारी छायावती और मराठी मुँहटेढ़ा बकासुर में भी अद्भुत समानताएं हैं I बिहार में एक प्रेरक लोककथा प्रचलित है I किसी महाविद्यालय में ‘भ्रष्टाचार की दशा – दिशा’ विषय पर पी-एच.डी. कर चुके एक नए प्राचार्य की नियुक्ति हुई I उन्होंने जल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक तालाब का निर्माण कराया I कुछ दिनों के बाद उनका तबादला हो गया I उनके स्थान पर एक नए प्राचार्य स्थानांतरित होकर आए I भ्रष्टाचार के संबंध में इनकी भी दूर – दूर तक ख्याति थी I उन्होंने उस तालाब की साफ़ – सफाई कराने के लिए मोटा माल खर्च किया I कुछ दिनों के बाद उनका भी तबादला हो गया I उनके स्थान पर कॉलेज में स्थानांतरित होकर तीसरे प्राचार्य आए I तीसरे प्राचार्य उन दोनों के गुरु रह चुके थे और वे भ्रष्टाचार विषयक शोध प्रबंध के विशेषज्ञ माने जाते थे I तीसरे प्राचार्य ने शासन को पत्र भेजा कि तालाब के कारण आसपास के गाँवों में महामारी फैलने की आशंका है I इसलिए तालाब को भरने की अनुमति दी जाए I अनुमति मिलने पर तालाब को मिट्टी से भरवा दिया गया I यह सब कुछ कागज पर हुआ I न मजदूर लगे, न मिट्टी खुदी, लेकिन तालाब के नाम पर तीन बार लक्ष्मी जी की कृपा बरसी I बाद में यह तालाब प्रकरण सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों और अभियंताओं के लिए केस स्टडी बना I
हमलोग ‘भ्रष्टाचार अमर रहे’ नामक एक अभिनव अभियान चला रहे हैं I हमारा ध्येय वाक्य है “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे” I ध्येय वाक्य के अनुसार हम देश के भ्रष्टाचारियों को वैधानिक, आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं I सभी भ्रष्टाचारियों को देश की मुख्यधारा में शामिल करना हमारा पावन राष्ट्रीय उद्देश्य है I भ्रष्टाचार के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने, भ्रष्टाचार की नई तकनीक को बढ़ावा देने और नए – नए तरीकों से सभी भ्रष्टाचारी भाइयों को अवगत कराने के लिए हम नुक्कड़ सभा, प्रशिक्षण शिविर, कार्यशाला आदि आयोजित करेंगे I हम सभी भ्रष्टाचारियों को एकजुट होने का आह्वान करते हैं I भ्रष्टाचारी बहुमत में हैं, फिर भी उन्हें हाशिए पर डाल दिया गया है, यह घोर अन्याय है I अब हम इस अन्याय और उत्पीड़न को सहन नहीं करेंगे I हम शासन से माँग करेंगे कि भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी और मिलावट को वैध बनाया जाए तथा संविधान संशोधन कर भ्रष्टाचार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाए I अगले चुनाव में हमारा वोट उसी पार्टी को जाएगा जो पार्टी अपने चुनावी घोषणापत्र में भ्रष्टाचार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने का वादा करेगी I आपलोग भी ‘भ्रष्टाचार अमर रहे’ अभियान में शामिल होकर आर्यावर्त में एक अराजक, विधिमुक्त, भ्रष्टाचारयुक्त, बेईमान, रिश्वतखोर, स्वच्छंद और सर्वतंत्र स्वतंत्र शासन – प्रशासन स्थापित करने के लिए अपनी राष्ट्रीय भूमिका का निर्वाह करें I आइए हम जोर से बोलें – भ्रष्टाचार अमर रहे I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]