मनुष्य का शेर होना
कोई मनुष्य ‘शेर’ कैसे हो सकता है? शेर उसे कहते हैं, जो दूसरे का आहार यानी चारा नहीं छीने, लेकिन उन्होंने छिना !
हर पिछड़ा वर्ग उन्हें प्यार करता था, तबतक ही…. जब वह खुद सीएम रहे ! तब से नहीं, जब खुद नहीं रहे, तो बीवी को सत्ता ! बीवी नहीं, तो बेट्टे को सत्ता !! उस पार्टी में एक से एक कद्दावर नेता रहने के बावजूद !
सत्ता के इर्दगिर्द रहने से ही समाजसेवा नहीं होती, हम कार्यकर्त्ता की तरह बाहर रहकर भी होती है ।
‘माई हथुआ राज मिल गइल’ – पहलीबार सीएम बनने पर कहा था ! लेकिन सीएम ‘सेवा’ का पद है, इसलिए सीएम बन जाना कोई हथुआ राज नहीं !
शून्य संपत्ति से संपत्ति के शिखर व मॉल तक कैसे पहुँच गए ? सभी को आप साजिश कह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते !
कोई ज़िन्दगी भर कमाकर भी एक मकान ढंग के बना नहीं पाते ! फिर इतने समृद्धियों के मालिक ‘गरीबों के मसीहा’ कैसे?
कार्यकर्त्ता को भी सीएम बनाइये । तब न !
सत्ता से चिपके रहना, किसी के लिए भी उचित नहीं है, चाहे कोई भी पार्टी हो !