लघुकथा

राजा बाबू

” तू ये हर समय राजाबाबू राजाबाबू क्या कहती है…
कैसा दिखता है वह एक दिन मुझे भी ले जा ना उसके घर….”
“तू उससे अपनी बराबरी ना कर, करमजले। इत्ते बड़े साब का बेटा है। सेव जैसा लाल दमकता चेहरा, काले रेशमी घुंघराले बाल। सुंदर से कपड़ों में सजा धजा कोई राजकुमार।”
“तो मुझे भी सुंदर कपड़े क्यों नहीं पहनाती है तू, बता….”

मां की बात चोट कर गई थी बाल मन पर। मां हमेशा उस राजा बाबू की ही बात करती। उसके खिलौनों की बातें करती। सुकोमल बाल मन व्यथित हो जाता कि ऐसा क्यों… कोई सुंदर कपड़ों में सजा धजा राजा बाबू और कोई चीथड़ो में टंगा हुवा कंकाल सा।
दरअसल गोपुलि भी तंग आ गई थी अपनी ज़िदगी से। छोटी सी उम्र में कल्लन से विवाह हो गया था उसका। खुद तो ठीक-ठाक थी दिखने में पर कल्लन अपने नाम के अनुरूप काला। और अब बेटा भी उसी पर गया था।

नन्हा बिरजू खुद को शीशे में देखने लगा था और उदास रहने लगा था। कभी-कभी गोपुलि को भी लगता कि वह परेशान तो कल्लन की वजह से है पर गुस्सा सारा बिरजू पर निकालती है। मगर कल्लन को कुछ कहेगी तो फिर हाथ उठा लेगा।

अगले दिन उसने मेम साहब को सारा किस्सा बताया तो वह बोली, “पांच साल का होने जा रहा है तेरा बेटा। किसी सरकारी स्कूल में उसको दाखिला दिला दे। फीस, खाना, कपड़ा सब स्कूल की ओर से दिया जाएगा। जो कुछ भी मदद बन पड़ेगी, मैं भी करूंगी।”

वही हुआ। गोपुली उसका दाखिला करा आयी। स्कूल में कुछ बच्चे उससे बेहतर स्थिति वाले थे, कुछ बदतर। जिंदगी को वह समझ रहा था धीरे-धीरे। कुल दो तीन शिक्षक थे मगर सभी मेहनती। बिरजू को कुछ भी ना आता था मगर ललक थी सीखने की सो जल्दी ही सीखने लगा। एक दिन घर आकर सोच में डूबा हुआ था। गोपुलि ने पूछा तो बोला, “राजा बाबू कैसे बनते हैं ..? मुझे भी बनना है।” “तू पढ़ लिखकर बन सकता है राजा बाबू ।”

समय पंख लगा कर उठ रहा था। कल्लन अपने व्यसनों में डूब कर बिस्तर में पड़ गया था। गोपुलि अपनी नियति को अभी भी ढो हो रही थी। हां, मेम साहब के समझाने पर उसने एक बच्चे वाली नीति को कायम रखा था। बिरजू एनसीसी का अच्छा कैडेट था। आर्मी में जाने की इच्छा जागृत हुई। चुनाव भी हो गया। आईएमए से प्रशिक्षण लेकर आज उसके कंधे में स्टार लगे हुए थे।
गोपुलि भी आई थी, व्हीलचेयर में कल्लन को साथ लेकर। अश्रु धारा झर झर बह रही थी। आज उसका करमजला राजा बाबू जो बन गया था।

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।