मेरे भी कब्र पर
मेरे भी कब्र पर बनते ताज पर ,
इश्क मेरा भी होता जांबाज गर |
तोड़ कर सारे बंधन चली आती मैं,
दिया होता मुझे तुमने आवाज़ गर |
रंग जम जाते महफिल में और भी,
बजते मेरे गीतों के संग साज गर |
और भी होती मेरी मुकम्मल गज़ल,
पता होता दिलों का मुझे राज गर |
दिखला देती मैं भी करिश्मे कई,
लगता इश्क का मुझे अंदाज गर |
उड़ आती तुम्हारे शहर में अभी ,
बना देता खुदा मुझे परवाज़ गर |
मर जाती किरण खुशी के मारे तब ,
तुम्हें भी होता मुझपर ज़रा नाज़ गर |