पाठक की कलम से- 1
होली (कविता)
जब आपस में बंद होती है बोली,
चलती बिन बन्दूक के गोली,
भागी-भागी आती है होली,
रंग-गुलाल लाती है होली,
जादूगरनी है यह होली,
दुश्मन भी बन जाते हमजोली,
फूलों की तरह खिल जाते हैं,
रंगों में रंग मिल जाते हैं,
जख्म पुराने सिल जाते हैं,
दुश्मन भी गले मिल जाते हैं,
बहकी-बहकी सबकी चाल,
डाल रहे सब एक दूजे पे गुलाल,
बहने लगी रंगों की गंगा,
चेहरा सबका रंग-बिरंगा,
बना चेहरे पर मानो तिरंगा,
राधा मले श्याम मुख पे गुलाल
मारे पिचकारी नन्द का लाल
गोपियाँ खेलें संग बाल-गोपाल
चेहरे सबके लालों-लाल, लालों-लाल,
ऐसे खिले अब होली का रंग,
कभी न हो दुनिया में जंग,
मिलके रहें सब प्यार अमन से
छोड़ें न कभी एक दूजे का संग,
यही है होली का त्यौहार.
-सुंदर प्रकाश चोपड़ा
चलते-चलते
भाई सुंदर प्रकाश चोपड़ा जी की यह कविता भाई रविंदर सूदन ने मार्च में होली के अवसर पर भेजी थी, लेकिन परिचय की प्रतीक्षा में प्रकाशित नहीं हो सकी थी. सुंदर प्रकाश चोपड़ा जी बुजुर्ग हैं और भाई रविंदर सूदन जी के पड़ोसी हैं. वे उर्दू जानते हैं और उर्दू में ही लिखते भी हैं. भाई रविंदर सूदन जी ने भाई सुंदर प्रकाश चोपड़ा जी के आग्रह पर इसे हिंदी में लिखकर भेजा है. इससे पहले भी भाई रविंदर सूदन जी ने भाई कृष्ण सिंगला जी की पहली कविता हमें भेजी थी. आपको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा, कि अब भाई कृष्ण सिंगला जी की कविता की किताब छप चुकी है. भाई रविंदर सूदन जी हमें डॉक्टर इला सांगा जी से भी मिलवा चुके हैं. यहां हम आपको यह भी याद दिलाना चाहते हैं, कि भाई सुदर्शन खन्ना जी ने भी हमें आदरणीय नरिंदर वाही (अब दिवंगत) जी से और गीता कुमारी जी से मिलवाया था. आप सबका प्रयत्न सराहनीय है. प्रस्तुत है नई श्रंखला ”पाठक की कलम से” की पहली कड़ी. इस बार एक नए कवि भाई सुंदर प्रकाश चोपड़ा जी की कलम से.
आदरणीय सुंदर प्रकाश चोपड़ा जी, सादर प्रणाम. आपकी कविता बहुत अच्छा लगी. आप इसी तरह अपनी रचनाएं भेजते रहिए, हम प्रकाशित करते जाएंगे. प्रेम और बंधुत्व का संदेश देती आपकी यह कविता अत्यंत सटीक व सार्थक लगी. आपके उज्ज्वल भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं.