मुक्ति कितनी है सुखदाई!.
मत समझो हम चीं-चीं करते,
हम हरि के गुण गाते हैं,
मुक्त उड़ान की सुविधा दी है,
उसका शुक्र मनाते हैं.
खुले गगन में सर्दी-गर्मी,
आंधी-पानी हैं दुखदाई,
तनिक मुक्ति से रह कर देखोम
मुक्ति कितनी है सुखदाई!.
मत समझो हम चीं-चीं करते,
हम हरि के गुण गाते हैं,
मुक्त उड़ान की सुविधा दी है,
उसका शुक्र मनाते हैं.
खुले गगन में सर्दी-गर्मी,
आंधी-पानी हैं दुखदाई,
तनिक मुक्ति से रह कर देखोम
मुक्ति कितनी है सुखदाई!.