बाल कविता

मुक्ति कितनी है सुखदाई!.

मत समझो हम चीं-चीं करते, एक गाती चिड़िया - हिंदी विवेक
हम हरि के गुण गाते हैं,
मुक्त उड़ान की सुविधा दी है,
उसका शुक्र मनाते हैं.
खुले गगन में सर्दी-गर्मी,
आंधी-पानी हैं दुखदाई,
तनिक मुक्ति से रह कर देखोम
मुक्ति कितनी है सुखदाई!.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244