अंधेरा कायम !
माँ ने संझा-बत्ती दे दी है, अभी भी बिजली नदारद है ! दिनभर तार बदलने के चक्कर में न हवा मिल रही है, न प्रकाश मिल रही है ! मोटर नही चला, तो पानी नहीं मिल रही है । बारिश के कारण सड़क पर कीचड़ ही कीचड़ । स्ट्रीट-लाइट नहीं जल रही है और लोग बारिश से जमे पानी में व कीचड़ में….. अंधेरा के कारण इनमें गिर जाते छपाछप ! कोई नाला नहीं बन पाया है….. जब दुकानदार ही हो जाय ‘नेता’, तब सब माल अपन बाप के गोदाम का ! इस काम में चट्टी-बट्टी सब मिले हैं ! ऐसे में गुरु महाराज की याद आती है ! पर गुरु महाराज भी क्या करे, वे चट्टन-बट्टन भी तो उनके रसिकदार हैं। सरकारी अस्पताल हेतु सरकार की जिम्मेवारी है, पर कोई मरीज प्राइवेट अस्पताल में मरते हैं, तो अस्पताली बिल माफ हो व कारक को सजा हो ही ! सरकार कोई भी हो, वो तो सरकार है, उनके पास बाप का माल है और सभी उनके बाप का साला है, ऐसे में ए. आर. रहमान याद आ जाते हैं, यह कहने को कि ‘जय हो’ !