सोच
कभी-कभी ऐसा संयोग बन जाता है, कि पड़ोसी अपनों से भी बढ़कर हो जाते हैं. इतना प्यार मिलता है, कि झोली छोटी पड़ जाती है. फिर वे दूर भी हो जाएं, तो भी दिल के पास ही रहते हैं. अनिता-सुनीता के परिवारों में भी ऐसा ही था.
एक बार फिर वे पास-पास रहने वाले पड़ोसी बन गए थे. विचारों का आदान-प्रदान चलता रहता, कभी-कभी दावतों का भी!
अनिता पहली बार विदेशी टूर पर मलेशिया गई थी. वापिस आकर सुनीता के हाथ में चार चॉकलेट पकड़ाकर बोली ”भाभी जी, आप चॉकलेट कम ही खाती हैं, इसलिए चार ही लाई हूं.”
”उसकी लाई हर चीज की तरह ये चॉकलेट भी एक्सपायरी डेट के होंगे.” जानते हुए भी सुनीता ने बाहर जाकर भी उसे याद रखने के लिए दिल से धन्यवाद दिया. अनिता के जाने के बाद उसने अच्छी तरह देखकर चॉकलेट को डस्टबिन के हवाले कर दिया, रिश्ते की मिठास बनी रहने दी.
”कल ”शेरे पंजाब” में जन्मदिन समारोह लंच है, आप लोग सपरिवार सादर आमंत्रित हैं.” सुनीता ने कहा.
”शेरे पंजाब” अनिता की जीभ लपलपा रही थी. ”शेरे पंजाब यानी नॉन वेज भी मिलेगा?” यह जानते हुए भी कि सुनीता खुद शाकाहारी है, अनिता खुद को बोलने से नियंत्रित नहीं कर पाई.
”भाई, मीनू तो शाकाहारी ही होगा, कमलेश दीदी भी आएंगी, वह भी शाकाहारी हैं.” अनिता का हताश हो जाना स्वाभाविक था.
पार्टी समाप्त हो गई, पर नॉन वेज की रट जिंदा रही. हर बार सुनीता की चुप्पी और अनिता के पति की समझाहट भी अनिता की नॉन वेज की रट को रोक नहीं पाई थी.
एक बार रात नौ बजे अनिता का इंटरकॉम आया- ”भाई साहब, आज हमने चिकन बनाया था. बच गया है, आपको दे जाऊं?”
”बहुत-बहुत शुक्रिया, पर अब तो हम डिनर कर चुके हैं.” भाई साहब ने फोन रख दिया, पर उसके बाद अनिता और उसके परिवार से रिश्ता रखने की कोई तुक नहीं बनती थी.
इंसान की पहचान की शुरुआत भले ही उसकी शक्ल और नाम से होती होगी, लेकिन उसकी पूरी पहचान तो बोल, सोच और कर्मों से ही होती है.
जरा-सी खुदगर्जी और नासमझी रिश्तों में खटास डाल देती है. छोटी सोच से कोई बड़ा नहीं होता, यह बात अनिता जैसी सोच वाले लोग शायद ही समझ पाएं!
रिश्ते हों या जीवन का कोई भी पहलू, छोटी सोच खटास डाल देती है, मिठास और मधुरिमता को हमेशा के लिए समाप्त कर देती है