गीतिका
बेजुबान मत बन कर बैठो खुलकर अपनी बात कहो
दिन को दिन बोलो, मत अंधियारो को कभी ,प्रभात कहो
कुछ तो अब करना ही होगा सोए हुए जगाने को
नयी राह से मन्जिल पाओ मत बाधा की बात कहो
शुद्ध पवन,आहार शुद्ध हो और शान्त माहोल रहे
करो मरम्मत बिल्ड़िंग की,दृड़ता सहती आघात कहो
ना जाति से छोटा कोई ,ना जाति से बड़ा कोई
कर्म बड़ा तो बड़ा आदमी,कर्म को ही अभिजात कहो
गिद्ध खड़े है घेर तुम्हे, गर मरे तो वो खा जायेगें
लाश ही गिद्धो का भोजन क्या बात नही है ज्ञात कहो
— शालिनी शर्मा