श्रमजीवी औरतें
कालीनों पर नहीं चलती ये औरतें
नरम गद्दो पर नहीं सोती ये औरते
कंकरीले पथ पर चलती हैं
इमारतें यूं ही नहीं बनतीं
पसीने की बूंदों से सींची जाती हैं
रोटी की खातिर नमक बहाती औरतें
सिर पर ईंटें ढोती हैं
चूल्हा जलाने की फ़िक्र
हर दिन ही होती है
यौवन को धूप में तपाती
कब लोहे से रंग में बदल जाती है
शाम ढले तक मुस्कुराती रहती है
कठिन श्रम कर रात में गीत गाती हैं
— अर्विना गहलोत