कविता

जागरण गीत 

सूर्य दीप्ति को तेज हीन
जब करने लगे श्यामल बदरी
जब बिना चन्द्र ही यात्रा में
निकल पड़ी हो विभावरी ।
लिखते जाना तुम अविरत
दिवा के आगमन गीत
ओज तेज के परि पूरक
चिर शक्ति के जो हों प्रतीक ।
जो राम सेतु के पत्थर हों
भव सागर में भी ना डूबें
हों अटल भक्ति प्रहलाद की वो
जो जलकर के भी ना छूटें ।
आकाशगंगा में विद्यमान
ध्रुव तारे जैसे दीप्तिमान
वो गीत बने रथ का पहिया
घायल अभिमन्यु का स्वाभिमान ।
सूर्य के सातों अश्वों से
जो तीव्र, धवल, बलशाली हों
वो गीत हों लाठी का संबल
जिनसे जन्मी आज़ादी हो ।
द्वेष से जब सृष्टि में
अनुराग गौड़ हो जाएगा
वो गीत तब गांडीव बन
खुद पर विश्वास सिखाएगा ।
संघर्ष तरू की मंजरी से
मांग कर के बल लिखना
वातायन में पथ भूला है आज
उस गीत का तुम कल लिखना ।
तिरस्कार से आहत हो
तुम मौन ना होना आज प्रिए
नभ से पर्वत तक गूंजे जो
उस गीत का हो निर्माण प्रिए ।
— हर्षिता सिंह

हर्षिता सिंह

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